लखनऊ। सीजोफ्रिनिया एक मानसिक बीमारी है। यह मानसिक बीमारी तेजी से पांव पसार रही है। इस बीमारी में मरीज को अपने ऊपर ही शक होता है। ऐसे में मरीज को लगता है कि उसे को मारने वाला है या फिर नहाते समय उसे डर लगा रहता है। विश्व सीजोफ्रिनिया जागरुकता दिवस को लेकर यह जानकारी लोहिया अस्पताल के मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. देवाशीष शुक्ला ने दी।
न पड़े झाडफ़ूंक के चक्कर में
उन्होंने कहा कि इसकी शुरुआत 13 से 15 साल की उम्र में होती है। उन्होंने कहा कि इस बात का ध्यान रखा जाए कि कई बार परिजन मरीज को लेकर झाडफ़ूंक के चक्कर में पड़ जाते हैं और सही समय पर इलाज नही मिलने से बीमारी और बढ़ जाती है। ऐसे परिजनों की संख्या करीब 80 से 90 फीसदी है। अगर बच्चे के व्यवहार में असामान्य परिवर्तन हो, परिवार के सदस्यों को देखकर घबराए तो संजीदा हो जाएं। यह मानसिक बीमारी सीजोफ्रिनिया हो सकती है। मानसिक रोग विशेषज्ञ की सलाह पर इसका अच्छे से इलाज कराएं।
संभव है इलाज
डॉ. देवाशीष ने बताया कि सीजोफ्रिनिया का दवाओं और काउंसलिंग से इलाज मुमकिन है। इलाज कर बीमारी पर 70 प्रतिशत तक काबू पाया जा सकता है। मरीज सामान्य जीवन जी सकता है। सीजोफ्रिनिया 1000 में 2 से 3 लोगों को होती है। यह बीमारी पुरुषों में ज्यादा होती है।