लखनऊ। नवजात शिशुओं को दस्त लगना एक सामान्य बात है, लेकिन समुचित देखभाल न की जाए तो बच्चे के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। इसलिए गर्मी के मौसम में बच्चों को डायरिया से बचाएं। क्योंकि पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण दस्त संबंधी बीमारियां हैं।
गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल संक्रमण के कारण
डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. ओमकार यादव ने बताया कि यह बीमारी दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों को ज्यादा प्रभावित करती है। नवजात शिशुओं में दस्त की पहचान यही है कि बच्चा सामान्य से अधिक पतला शौच करता है। डॉ. ओमकार ने बताया कि यह गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल संक्रमण के कारण होता है जो जीवाणु, विषाणु तथा परजीवी जीवों के माध्यम से होता है। यह संक्रमण दूषित भोजन, पानी, तरल पदार्थ आदि से फैलता है।
शिशु को चिकित्सक को दिखाना चाहिए
दस्त कई दिनों तक रह सकता है तथा शरीर में पानी व लवण (साल्ट) की कमी कर देता है। जीवित रहने के लिए शरीर में पानी और लवण का उचित मात्रा में बने रहना नितान्त जरूरी होता है। दस्त होने पर शिशु रोग विशेषज्ञ से संपर्क करना अत्यंत आवश्यक है परन्तु ये लक्षण उत्पन्न होने पर थोड़ा भी समय बर्बाद नहीं करना चाहिए और शिशु को चिकित्सक को दिखाना चाहिए।
लक्षण
- बच्चा पिछले 8 घंटे से पेशाब न कर रहा हो, मुंह सूखा हो, रोते समय आंसू न निकल रहे हों।
- दस्त में रक्त दिखाई दे रहा हो।
- दस्त पानी की भांति हो रहा हो तथा उल्टी भी हो रही हो।
- बच्चा बहुत अधिक सुस्त हो गया हो बच्चे को तीन दिनों से बुखार हो।
- बच्चा अक्सर चिल्ला रहा हो।
- बच्चे के पेट, आंख और गाल धंसे हुए दिखाई दे रहे हों।
दस्त के दौरान ध्यान दें
बच्चा यदि नवजात हो और मां के दूध पर आश्रित हो तो कुछ अन्तराल पर उसे मां का दूध पिलाते रहें।
यदि बच्चा चार माह से अधिक है तो उसे ओ. आर. एस. (पानी, नीबू, चीनी व नमक का घोल) एवं हल्का भोजन खिलाते रहें।
बच्चे का डायपर आदि बदलने पर हाथ साबुन से धोयें अन्यथा संक्रमण फैलने की संभावना हो सकती है।