वाराणसी। कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी को रोकने के लिए अब एक बिस्किट ही काफी है। यह बड़ी खोज की है काशी हिंदू विश्वविद्यालय ने। यह बिस्किट शुगर के गंभीर और सैकेंड स्टेज कैंसर रोगियों के शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का काम करेगी। यह बिस्किट बीएचयू के कृषि विज्ञान संस्थान के खाद्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी केंद्र ने बनाया है। मधुमेह रोगियों के शरीर में इंसुलिन की मात्रा स्वाभाविक रूप से बढ़ाएगा। यह बिस्किट कैंसर के रोगाणुओं को नष्ट करने की क्षमता भी रखता है।
ऐसे किया काम
खाद्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी केंद्र के एचओडी प्रो. अनिल चौहान ने छह महीने तक गहन शोध के बाद यह बिस्किट तैयार करने में सफलता पाई है। उन्होंने बताया कि इसे तैयार करने के लिए नेचुरल स्वीटनर स्टीविया और मेथी को विशेष अनुपात में प्रयुक्त किया गया है। मेथी की विशिष्ट मात्रा स्टीविया के साथ मिलकर ट्राइवोलिन और इंसुलिन बनाने की स्वाभाविक प्रक्रिया से ब्लड ग्लूकोज को नियंत्रित रखने में सहायक होती है। स्टीविया और मेथी का यह संयोजन हाइपो कोलेस्टालेमिक एंटी वैक्टीरियल के जरिए कैंसर के रोगाणुओं को नष्ट करता है। गणितीय अनुपात में मैदा और सप्रेटा दूध के पाउडर बिस्किट का बेस बनाया गया है।
बिस्किट में इन सब की एक निश्चित मात्रा शरीर में पहुंचने के बाद पीआई-थ्री काइनेज इंजाइम, फोर हाइड्राक्सी इसोल्यूसिन के माध्यम से पैैक्ररयाटिक सेल (अग्नाशय कोशिकाओं) को री.जेनरेट करता है। ये तत्व शरीर में एंटी डायविटिक, एंटी कैंसर और हेप्टोप्रोटेक्टिव के रूप में काम करते हैं।
मीठी है स्टीविया की पत्ती
स्टीविया एक ऐसा नेचुरल स्वीटरन है जो चीनी की तुलना में पचास से सौ गुना अधिक तक मीठा हो सकता है। हमारे पर्यावरीण परिवशेष में इसकी उपलब्धता भी बहुत कठिन नहीं है। स्टीविया में सामान्य चीनी जैसे किसी भी प्रकार के कोई दुर्गुण नहीं होते। खास तरह के बिस्किट को तैयार करने में लागत बेहद कम आई है। बाजार में बिकने वाले सामान्य बिस्किट की दर पर ही इसे जरूरतमंदों को सुलभ कराया जा सकता है। सामान्य पैकेट में यह बिस्किट एक महीने और विशेष पैक में छह महीने तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में मिली तवज्जो
इसी महीने मैसूर में हुए खाद्य वैज्ञानिकों में अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में प्रो. चौहान ने अपने इस नवीनत शोध को दुनिया के 35 देशों से जुटे 28 सौ खाद्य वैज्ञानिकों के समक्ष प्रस्तुत किया था। सेमिनार में इसे मानव कल्याणकारी खोज की संज्ञा दी गईर्। उनके रिसर्च पेपर एशियाई स्तर पर प्रकाशित किए जाने वाले जापानी और कोरियन जर्नल में भी आमंत्रित किए गए हैं।