लखनऊ। महिलाओं में जागरुकता की अभी और जरूरत है। घर में प्रसव के आकड़ों में कमी तो आई है लेकिन इससे पूरी तरह निजात नहीं मिल सका है। घर में प्रसव से मां और बच्चे दोनों की जान जोखिम में पड़ सकती है। जबकि सरकारी अस्पतालों में गर्भावस्था से लेकर प्रसव तक की इलाज की सुविधा दी जा रही है और वह भी मुफ्त में। ऐसे में महिलाएं घरों में दाई व अप्रशिक्षित महिलाओं से प्रसव न कराएं। उक्त बातें सीएमओ नरेंद्र अग्रवाल ने कही।
जागरुकता लाने का कर रहे काम
सरकारी अस्पतालों में शहरी क्षेत्र की महिला को 1000 व ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को प्रसव के बाद 1400 रुपये दिए जाने की व्यवस्था है। सीएमओ डॉ. नरेंद्र अग्रवाल ने बताया कि 2017-18 में 4588 प्रसव घर में हुए थे। कुल 55959 प्रसव हुए थे। वहीं 2018-19 में कुल 55550 प्रसव हुए। इनमें 3230 प्रसव घर में हुए। सीएमओ ने कहा कि महिलाओं को जागरूक करने के लिए आशा व एएनएम की ड्यूटी लगाई जा रही है। गर्भवती महिलाओं की निगरानी कराई जा रही है। उन्हें घर पर आयरन व फोलिक एसिड की गोलियां मुहैया कराई जा रही हैं। उन्होंने बताया कि इस साल अभी तक 236 प्रसव घर में हुए हैं।
परिवार नियोजन में हिचक कैसी
परिवार नियोजन के तमाम साधन बाजार में उपलब्ध हैं। सरकारी अस्पतालों में परिवार नियोजन के साधन मुफ्त मुहैया कराए जा रहे हैं। इन्हें अपनाकर अनचाहे गर्भ से महिलाएं बच सकती हैं और जनसंख्या पर भी काबू पाया जा सकता है। यह जानकारी महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. अनीता सिंह ने दी। वह गुरुवार को केजीएमयू कलाम सेंटर में विश्व जनसंख्या दिवस पर आयोजित सेमिनार को संबोधित कर रही थीं। डॉ. अनीता सिंह ने कहा कि परिवार नियोजन की विभिन्न विधियां जिनमें की स्थाई (महिला नसबंदी एवं पुरूष नसबंदी) व अस्थाई विधियां उपलब्ध हैं।
बराबर की भागीदारी होनी चाहिए
उन्होंने कहा कि समाज में हर क्षेत्र में महिलाओं एवं पुरुषों की समान भागीदारी है। ऐसे में परिवार नियोजन के क्षेत्र में भी पुरुष व महिलाओं की बराबर की भागीदारी होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि प्रत्येक एक हजार नसबंदी में से सिर्फ 13 नसबंदी ही पुरुष के द्वारा कराई जाती हैं। उन्होंने बताया कि पुरुष नसबंदी को लेकर समाज में व्याप्त अंधविश्वास एवं भ्रांतियों को दूर करने की जरूरत है।