लखनऊ। खसरा एक संक्रामक बीमारी है जो की सीधे तौर पर श्वसन तंत्र को प्रभावित करती है। यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को आसानी से अपनी चपेट में ले लेती है। यह तब फैलती है जब स्वस्थ व्यक्ति किसी भी संक्रमित लार या श्लेष्म वाले के संपर्क में आ जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वायरस के संपर्क में आने के 10-12 दिनों के बाद खसरे के लक्षण दिखायी देते हैं।
ये लक्षण
तेज बुखार, बहती नाक, गले में खराश, लाल आंखे व मुंह के अंदर सफ़ेद चकत्ते होते हैं। गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों में गंभीर खसरा होने की संभावना अधिक होती है विशेषकर ऐसे बच्चे जिनमें विटामिन ए की कमी है या प्रतिरक्षा प्रणाली एड्स या अन्य गंभीर बीमारियों के कारण कमजोर होते हैं। सबसे गंभीर जटिलताओं में अंधापन, इंसेफेलाईटिस (संक्रमण, जिसके कारण मस्तिष्क में सूजन आ जाती है), गंभीर दस्त जिसके कारण शरीर में पानी की कमी हो जाती है और निमोनिया शामिल है।
बच्चों में आसानी से होता है खसरा
रानी अवन्तिबाई जिला महिला चिकित्सालय के बाल राग विशेषज्ञ डॉ. सलमान बताते हैं कि खसरा बच्चों में आसानी से होता है इससे बचने का सबसे आसान तरीका इसका टीका लगवाना है। मीजल्स व रूबेला का टीका जो कि नौ माह पर व बाद में डेढ़ साल पर बच्चों को लगता है इसके साथ में विटामिन ए की दवा देनी भी जरूरी होती है।
इसके बाद भी यदि बच्चे को खसरा हो जाता है तब सबसे पहले संबन्धित क्षेत्र के स्वास्थ्य अधिकारी को इसकी सूचना देनी चाहिए ताकि वह स्वास्थ्य टीम भेजकर समय रहते जरूरी प्रबंध करा सकें। इसके साथ ही साथ यह सुनिश्चित करना चाहिए की संक्रमित बच्चे के आस-पास रहने वाले 5 वर्ष तक के सभी बच्चों को खसरे का टीका लग चुका हो व विटामिन ए की खुराक दी जा चुकी हो।
सफाई का विशेष ध्यान दें
संक्रमित बच्चे को अन्य स्वस्थ लोगों से अलग रखना चाहिए। सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। बच्चे को सामान्य भोजन खिलाना चाहिए। यह ध्यान भी देना चाहिए कि शरीर में पानी की कमी न होने पाये। अत: तरल खाद्य पदार्थ का समुचित सेवन कराना चाहिए। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-4) के अनुसार उत्तर प्रदेश में 12-23 माह के 51.1 फीसदी व लखनऊ जिले में 58.8 फीसदी बच्चे पूर्णतया प्रतिरक्षित (बीसीजी, खसरा व पोलियो तथा डीपीटी के तीनों टीके) हैं।