लखनऊ। डायबिटीज एक प्रकार का मेटाबॉलिक डिसॉर्डर है, हमारे शरीर मे पैंक्रियाज नामक ग्रन्थि होती है जिसमें स्थित बीटा सेल्स द्वारा मुख्य रूप से इन्सुलिन व अल्फा सेल्स द्वारा ग्लूकागान हनामक दो हॉर्मोन निकलते हैं। इसमें इन्सुलिन के ठीक प्रकार से कार्य न कर पाने से रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है। इससे व्यक्ति डायबिटीज रोग से ग्रसित हो जाता है।
जांचोंपरांत इस रोग का मानक स्तर खाना खाने से पहले 80 से 110 मिली/डी.एल तथा 110 से126 मिली/डी.एल हो जाने पर डायबिटीज का सूचक होता है तथा खाने के बाद मानक स्तर 140 से 200 मिली/डी.एल हो जाए तो डायबिटीज का सूचक है। यह भारत में मृत्यु का 7वां सबसे बड़ा कारण है। इस बारे में जानकारी दे रहे हैं डॉ. अमरजीत यादव।
भारत में डायबिटीज
भारत मे लगभग 6 करोड़ 60 लाख इस रोग से ग्रसित हैं। सन् 1995 में विश्व की मधुमेह आबादी में हर 7वां व्यक्ति भारतीय था, जबकि सन 2025 में हर पाचवां मधुमेह रोगी भारतीय होगा। भारत में मधुमेह रोगियों की संख्या बढऩे से भी ज्यादा चिन्ताजनक तथ्य यह है कि युवाओं में मधुमेह की संख्या बढ़ रही है। वर्तमान में लगभग 30 प्रतिशत रोगी 20 से 40 वर्ष की उम्र के हैं।
कारण
अनियमित जीवन शैली, तनाव, अनुवांशिकता, मोटापा, श्रम का अभाव, गलत आहार विहार, अत्यधिक दवाओं का सेवन, इंफेक्शन इत्यादि।
लक्षण
प्रारंभिक अवस्था मे डाइबिटीज के लक्षण इतने माइल्ड होते है कि उन्हें जान पाना बहुत ही मुश्किल होता है और इसके साथ साथ मुँह सूखा रहना,अधिक भूख लगना व कमजोरी लगना, त्वचा में खुजली, फंगल इंफेक्शन, तथा फुन्सी, फोड़े, कट जाने पर देर से ठीक होता है।
प्रकार
डायबिटीज निम्नलिखित मुख्य प्रकार हैं
टाइप 1- जब पैंक्रियास के बीटा सेल्स जो इंसुलिन पैदा करती हैं वह हमारी प्रतिरक्षा तंत्र को फॉरेन बॉदडी समझ कर नष्ट कर देता है यह 5 परसेंट से कम मामलों में ही होता है।
टाइप 2-डायबिटीज में मेलिटस 95 परसेंट मामले ही यही होते हैं कारण इन्सुलिन रेजिस्टेंस गरिष्ठ भोजन से रक्त में शुगर का स्तर बढ़ जाता है।
योगिक उपचार
मधुमेह रोग के अंतर्गत हमे सर्वप्रथम जीवनशैली में सुधार करते है उसके पश्चात सूर्य नमस्कार,
आसनों के अंर्तगत अर्धमत्स्येंद्रासन, मंडूकासन हलासन, मत्स्यासन तथा प्राणायाम के अंर्तगत
नाड़ी शोधन, कपालभाति।
योग में वर्णित बंध मुद्रा उड्डीयान बंध, योगिक मुद्राओं में ज्ञान मुद्रा, शांभवी मुद्रा आदि लाभकारी हैं। योग में शरीर शोधन के लिए शट्कर्म के अंतर्गत- धौति, बस्ती, शंख प्रक्षालन क्रिया से लाभ प्राप्त होता है।
प्राकृतिक चिकित्सा उपचार
मिट्टी चिकित्सा के अंतर्गत मिट्टी की पट्टी उदर पर 40 मिनट के लिए रखना लाभकारी होता है। जल चिकित्सा के अंतर्गत कटि स्नान तथा स्पाइनल स्प्रे से लाभ होता है।