लखनऊ। भारत में हृदय रोगियों की संख्या में हाल ही के कुछ वर्षों में बेतहाशा वृद्धि हुई है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अनुमान के मुताबिक 2018 तक विश्व में हृदय रोगों से मरने वाले अधिकांश लोग भारतीय होंगे। भारतीय चिकित्सकों के लिये यह एक गंभीर मुद्दा इसलिये भी है क्योंकि एंजाइना और अन्य हृदय रोगों के उपचार के लिये भारत में उपयोग की जाने वाली शल्य चिकित्सा काफी महंगी हैं तथा रोगी के शत प्रतिशत स्वस्थ होने की कोई गारंटी भी नहीं देती।
खर्चा कम
डॉ. एसएस सीबिया के अनुसार बहरहाल दुनिया भर के हृदय रोगियों के लिये पिछले कुछ समय से विकसित की गई ईसीपी (एक्सटर्नल काउंटर पल्सेशन) और एसीटी (आर्टरी कीलेशन थैरेपी) नामक गैर शल्य चिकित्सा पद्धति एक वरदान साबित हो रही है। ईसीपी हृदय रोगों के उपचार की एक सहज, कम खर्चीली और प्रभावशाली पद्धति है। क्लीनिकली तौर पर परखी गई इस पद्धति में न तो रोगी के शरीर में कोई चीर फाड़ की जाती है और न ही उसे अस्पताल में दाखिल किये जाने की कोई आवश्यकता होती है।
ऐसा होता है
ईसीपी द्वारा धमनियों में होने वाली रुकावट को आसानी से दूर किया जा सकता है। धमनियों से अवरोध हटते ही हृदय और शरीर में रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है। ईसीपी में उस सिद्धांत पर काम करती है जो कि यह सिद्ध करता है कि दिल के धड़कने की प्रक्रिया पर पडऩे वाले दबाव को कम करके दिल के दौरों को रोका जा सकता है। रक्त की धमनियों में कोलेस्ट्राल व कैल्शियम की कमी के जमाव के कारण होते हैं। इसके अलावा लैड (सीसा) व मरकरी (पारा) जैसी भारी धातुओं (हैवी मैटलेज) के जमाव के कारण भी खून में प्रदूषण बढ़ जाता है, जिससे विभिन्न प्रकार के हृदय रोग जन्म लेते हैं।