लखनऊ। केजीएमयू के कलाम सेंटर में सीएफआर विभाग की ओर से शनिवार को आयोजित वार्षिक थैलेसीमिया अपडेट 2018 विषयक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन एरा मेडिकल कॉलेज के कुलपति प्रो. अब्बास अली मेंहदी और प्रो. अमिता जैन ने किया। कार्यक्रम का आयोजन सीएफएआर विभाग (साइटोगेनेटिक्स यूनिट) की सहायक प्रोफेसर डॉ. नीतू निगम ने किया।
यह दी गई जानकारी
थैलेसीमिया खून की कमी की बीमारी है। इस बीमारी के होने पर बच्चे में तीन महीने से एक साल के अंदर खून की कमी होने लगती है। इसलिए गर्भावस्था के दौरान ही 10 से 12 हफ्ते पर (कारियोनिक विलस सैंपलिंग) सीवीएस या 14-16 हफ्ते में गर्भ के पानी की जांच से कर सकते हैं। जिससे यह पता लगाया जाता है कि वह बच्चा थैलेसीमिया की चपेट में है या नहीं। इसकी पुष्टि होने पर डॉक्टर गर्भपात का सुझाव दे सकते हैं।
अनुवांशिक बीमारी है
हिमेटोलॉजी विभाग के हेड डॉ. एके त्रिपाठी ने बताया कि थैलेसीमिया के कारण होने वाली खून की कमी के लिए डेस्फराल या केल्फर या डेफेरीसिराक्स नामक दवाई शुरू करनी पड़ती है। यह एक प्रकार की अनुवांशिक बीमारी है। इस दौरान लखनऊ निवासी एक पीडि़़त सोनी यादव ने इस बीमारी के बारे में अपने अनुभव भी साझा किए। सोनी के मुताबिक ढाई साल की उम्र में इस बीमारी के होने का पता चला। हालांकि उनके परिवार ने कभी इस बीमारी को उनकी पढा़ई में अड़चन नहीं आने दी। वह फॉर्मासिस्ट की पढ़ाई कर रही हैं।
बचाव
प्रसव पूर्व गर्भ परीक्षण। गर्भवती स्त्री के गर्भ में बच्चे की जांच 10-12 हफ्ते पर सीवीएस या 14-16 हफ्त में गर्भ के पानी की जांच से कर सकते है। यह पता लगाया जाता है कि वह बच्चा थैलेसीमिया मेजर से ग्रसित है या नहीं। यदि निदान में पता चलता है कि बच्चा ग्रसित है तो गर्भपात का उपाय माता-पिता को बताया जा सकता है। इससे परिवार में थैलेसीमिया मेजर से ग्रस्त बच्चे के जन्म की पीड़ा से बचाव हो सकता है।