लखनऊ। केजीएमयू दंत संकाय के आर्थोडोन्टिक्स विभाग की ओर से मंगलवार को जागरुकता कार्यक्रम आयोजन हुआ। आर्थोडोन्टिक्स जागरुकता कार्यक्रम को केजीएमयू आर्थोडोंन्टिक्स विभाग के डॉ. अमित नागर ने संबोधित किया।
खाना-पान पर विशेष ध्यान दें
उन्होंने बताया कि गर्भावस्था में महिलाओं को अपने खाना-पान पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है। ध्यान ना देने की दशा में बच्चों पर इसका सीधा असर पड़ता है। इससे बच्चों के दांतों पर प्रभाव पड़ता है। बच्चों के दांतों में वास्तविक सफेदी नहीं रहती और उनमें पीलापन आ जाता है। दांत कमजोर भी हो जाते हैं। डॉ. अमित नागर ने कहा कि गर्भावस्था में महिलाओं को फल का सेवन करना चाहिए और हरी सब्जियां भी फायदेमंद हैं। इसका सेवन करने से गर्भस्थ को पर्याप्त कैल्शियम, फास्फोरस समेत दूसरे पोषक तत्व मिलते हैं। जो शिशु की सेहत के लिए उनके दांतों के लिए भी जरूरी है।
बच्चा अंगूठा चूसे तो
आर्थोडोन्टिक्स विभागाध्यक्ष डॉ. प्रदीप टंडन ने कहा कि तमाम बच्चे अंगूठा चूसते हैं। लाख कोशिशों के बाद भी बच्चे आदत नहीं छोड़ते हैं। उन्होंने बताया कि इससे दांत टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं। दांत बाहर की ओर निकल आते हैं। इससे बचने के लिए उपकरण उपलब्ध हैं जो बच्चे के मुंह में एक समय तक के लिए प्रत्यारोपित कर देते हैं।
टेढ़े-मेढ़े दांत
प्रो. प्रदीप टंडन ने कहा कि टेढ़े-मेढ़े दांतों से आप भोजन ठीक से नहीं चबा पाते हैं। इसकी वजह से उनके स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा बोलने में भी परेशानी होती है।
इलाज में ना करें देरी
विभाग के डॉ. ज्ञान ने बताया कि ऑर्थोडॉन्टिक इलाज शुरू करने के लिए सही समय तभी होता है जब बच्चे की उम्र 7 से 8 वर्ष हो। आमतौर पर लोग इलाज में देरी कर देते हैं। ऐसे में परेशानी बढ़ जाती है।