लखनऊ। आईबीडी (Inflammatory bowel disease) बड़ी और छोटी आंतों को प्रभावित करती है। आईबीडी दो प्रकार के होते हैं। पहला अल्सरेटिव कोलाइटिस और क्रोन्स रोग। अल्सरेटिव कोलाइटिस में बड़ी आंत को प्रभावित करती है। वहीं क्रोन्स में बड़ी और छोटी दोनों आतों को प्रभावित करती है। कई बार ऐसा भी होता है कि मल के रास्ते खून आ जाता है और लोग बवासीर समझकर इलाज करा बैठते हैं, हो सकता है कि यह आईबीडी हो।
यह है कारण
अल्सरेटिव कोलाइटिस बीमारी का कोई निश्चित इलाज वर्तमान समय में नहीं है। वर्तमान समय में मौजूद नहीं है। डॉक्टरों की मानें तो इस बीमारी वजह बदलती जीवनशैली और खराब खान-पान है। इसके अलावा परिष्कृत भोजन (मैदा, परिष्कृत चीनी) का अधिक सेवन, ताजे फल और सब्जियों की कमी, धूम्रपान व तम्बाकू का सेवन, दर्द निवारक दवाओं का बार-बार सेवन करने से यह बीमारी होने की संभावना है।
ये हैं लक्षण
उक्त बातें विश्व आईबीडी दिवस पर की पूर्व संध्या पर आयोजित एक पत्रवार्ता में केजीएमयू के मेडिकल गैस्ट्रोएण्ट्रोलॉजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सुमित रूंगटा ने कहा। केजीएमयू के शताब्दी-2 में विभाग के प्रेक्षागृह में कार्यक्रम हुआ। उन्होंने कहा कि लम्बे समय तक दस्त होना, पेट में दर्द, मल में रक्त, बुखार, वजन में कमी और पोषण संबंधी कमियों के लक्षणों के साथ प्रकट होती है। पंजाब और हरियाणा में किए गए अध्यनों से पता चला है कि करीब एक लाख में से 45 लोग अल्सरेटिव कोलाइटिस से पीडि़त हैं। डॉ. सुमित ने बताया कि दर्द निवारक दवाएं आंतों को नुकसान पहुंचाती हैं। आंतों में घाव की संभावना को बढ़ाता है। उन्होंने बताया कि आंतों में बैक्टीरिया होते हैं। घाव की वजह से बैक्टीरिया खून में मिल जाते हैं। इससे मरीज को परेशानी बढ़ जाती है।
कोलोनोस्कोपी द्वारा उपचार
आयोजित कार्यक्रम का उद्देश्य था कि लोगों को आईबीडी के प्रति एकजुट किया जाए। आईबीडी दो प्रकार के होते हैं। पहला अल्सरेटिव कोलाइटिस और क्रोन्स रोग। आईबीडी के अधिक से अधिक मामलों का निदान किया जा रहा है। आईबीडी का उपचार कोलोनोस्कोपी द्वारा किया जाता है। इस बीमारी के लक्षण अन्य बीमारियों जैसे बवासीर, आंतो की टीबी से मिलते-जुलते हैं इसलिए इस बीमारी की जल्दी पहचान नहीं होती है। इसके लिए चिकित्सक की सलाह और उपयुक्त जांच इस बीमारी के इलाज में सहायक हैं।
खर्च है कम
इस बीमारी में कई दवाए मौजूद हैं जो अधिकांश मरीजों में काम करती हैं और रोग को रोके रखती है। कुछ मरीजों में और अधिक असरकारक दवाइयों की जरूरत होती है। ऐसे में जैविक दवाओं का प्रयोग किया जाता है। जैविक दवाएं महंगी और जटिल होती हैं। यहां भारत में सस्ती दवाएं मौजूद हैं। इसकी लागत एक माह में करीब 20 से 25 हजार की होती हैं।
ये है विशेष जांच
पीजीआई गेस्ट्रोइंट्रोलॉजी विभाग के डॉ. अभय वर्मा ने बताया कि इस बीमारी से बचने के लिए लोगों को मौसमी ताजे फलों का सेवन करना चाहिए। रेशेदार फल अधिक फायदेमंद हैं। हरी सब्जियां को सेवन भी लाभकारी है। मोटे अनाज का सेवन करें। मिर्च-मसाला व तली-भुनी वस्तुओं के सेवन से बचें। इससे बीमारी के खतरों को काफी हद तक टाल सकते हैं। अल्सरेटिव कोलाइटिस में एक नई तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है। इस नई तकनीक को एफएमटी कहते हैं। इसमें किसी स्वस्थ व्यक्ति के मल से जीवाणुओं को अलग कर बीमार व्यक्ति की आंतों में कोलोनोस्कोपी के द्वारा स्थापित कर दिया जाता है। यह तकनीक काफी सहायक सिद्ध होती है।