लखनऊ। स्वाइन फ्लू के उपचार से ज्यादा इससे बचने की जरूरत है। खांसते और छींकते वक्त मुंह पर हाथ नहीं रखना चाहिए, बल्कि अपनी कोहनी से मुंह को ढकना चाहिए। यदि आप मुंह पर हाथ रखते हैं तो वायरस हमारे हाथ में इक_ा हो जाते हैं और जब हम किसी से हाथ मिलाते हैं या किसी वस्तु को छूते हैं तो वह सारे वायरस वहां फैल जाते हैं। यह बात मंगलवार को मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय में स्वाइन फ्लू पर आयोजित कार्यशाला में चेस्ट रोग फिजीशियन डॉक्टर बीपी सिंह ने कही। उन्होंने स्वाइन फ्लू के कारण, लक्षण, बचाव तथा चिकित्सा पर विचार व्यक्त किए।
ड्रॉपलेट इंफेक्शन से फैलता है संक्रमण
डॉक्टर बीपी सिंह ने कहा कि मुंह पर हाथ के बजाए कपड़ा रखना चाहिए और अगर कपड़ा ना मिले तो कोहनी से मुंह को ढक लेना चाहिए। उन्होंने बताया कि स्वाइन फ्लू भी आम फ्लू की तरह होता है जिसमें जुकाम, खांसी, बुखार, गले में दर्द उल्टी लगना या उल्टी आना, सिरदर्द, बदन दर्द आदि होते हैं। इसका संक्रमण ड्रॉपलेट इंफेक्शन से फैलता है।
ऐसे लोगों को ज्यादा खतरा
रोगी के खांसने और छींकने से इसके कीटाणु वातावरण में आते हैं जो किसी भी वस्तु पर 6 से 8 घंटे तक जीवित रहते हैं। स्वस्थ व्यक्ति जब किसी भी कुर्सी, दरवाजे या किसी व्यक्ति से हाथ मिलाता है तो यह वायरस उसके हाथ से आंख और नाक को छूने पर उसके शरीर में पहुंच जाते हैं। रोगी औसतन 1 दिन पहले से लेकर 7 दिन तक वायरस वातावरण में फैलाता है। संक्रमित होने के 2 दिन बाद लक्षण प्रकट होते हैं जो कि 1 से 4 दिन तक प्रकट हो सकते हैं। उन्होंने बताया कि बच्चों में जिनमें कोई अन्य बीमारी हो, 65 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्तियों में, गर्भवती महिलाओं में तथा गंभीर बीमारियों से ग्रसित रोगियों जैसे फेफड़ों की बीमारी, ह्रदय रोग, मधुमेह रक्त की बीमारियां, कैंसर, एचआईवी एड्स, लिवर की बीमारी में यह रोग अधिक घातक होता है।
ये हैं लक्षण, ऐसे करें बचाव
स्वाइन फ्लू में सांस लेने में तकलीफ होना, सीने में दर्द होना, सुस्ती आना, ब्लड प्रेशर का कम होना, बलगम में खून आना, नाखून और होठों का नीला होना प्रमुख है। इसके बचाव के लिए बार-बार साबुन से हाथ धोते रहें, खासते, छींकते वक्त मुंह पर हाथ ना रखें बल्कि कपड़ा रखें अथवा अपनी कोहनी से से ढक लें। इस सीजन में हाथ मिलाने से बचे, नमस्कार करें। बगैर डॉक्टर की सलाह के दवा न लें।
गर्भवती को जरूर लगाई जाए वैक्सीन
इसकी वैक्सीन उपलब्ध है जो कि हाई रिस्क ग्रुप के व्यक्तियों को ही लगाई जाती है। वैक्सीन का इस्तेमाल 6 माह से कम उम्र के बच्चों में नहीं किया जाता, इसलिए यह जरूरी है कि गर्भवती महिलाओं को यह वैक्सीन लगाई जाए। इसके अलावा ट्रिपल लेयर सर्जिकल मास्क का इस्तेमाल ही करना चाहिए। मास्क लगाने के बाद उसका डिस्पोजल भी अत्यंत सावधानी के साथ किया जाना चाहिए। उप मुख्य चिकित्सा अधिकारी तथा नोडल अधिकारी डॉ. केपी त्रिपाठी ने बताया कि पिछले 4 वर्षों में 2018 में केसेज की संख्या बहुत कम हुई है। उन्होंने कहा कि 2015 में 1087, 2016 में 46, 2017 में 2192 केस हुए थे जिसमें 14 मरीजों की मृत्यु हुई थी लेकिन 2018 में इस रोग पर प्रभावी नियंत्रण किया गया जिसके कारण केवल 19 केस सामने आए और एक भी मरीज की मृत्यु नहीं हुई।
वायरस को मारने की दवा नहीं बनी
कार्यशाला में बोलते हुए एसजीपीजीआई की बाल रोग विशेषज्ञ डा. प्याली भट्टाचार्य ने कहा इस वायरस को मारने की दवा नहीं बनी है। बच्चे 10 दिन तक इस रोग के कीटाणुओं को फैलाते रहते हैं और जो बच्चे हाय रिस्क ग्रुप में आते हैं वह महीनों तक इसको फैलाते रहते हैं। 6 महीने से कम उम्र के बच्चों को स्वाइन फ्लू से बचाने का एकमात्र उपाय यही है कि गर्भवती महिला को बारिश का मौसम आने से 1 महीने पहले ही वैक्सीन लगा दी जाए। उन्होंने बच्चों को एक नारा भी दिया कफ एंड स्नीज एल्बो प्लीज इसका मतलब है कि खांसी या छींक आने पर अपना हाथ मुंह पर नहीं रखना चाहिए बल्कि कोहनी के हिस्से से ढकना चाहिए।
इन्हें नहीं देनी चाहिए वैक्सीन
डॉ. प्याली भट्टाचार्य ने बताया कि आने वाले समय में एवियन इनफ्लुएंजा एक बड़ा खतरा बन सकता है जो पक्षियों से मनुष्य में और फिर मनुष्य से मनुष्य में फैलता है। वैक्सीन के बारे में उन्होंने बताया कि जो रोगी व रोगियों के संपर्क में आने वाले टेमीफ्लू ले रहे हो, उन्हें वैक्सीन नहीं दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि चिकनपॉक्स के मरीज को भी यह वैक्सीन नहीं देनी चाहिए। ठीक होने के 4 सप्ताह बाद यह वैक्सीन दी जा सकती है। इस कार्यशाला में लखनऊ के प्रसिद्ध पैथोलॉजिस्ट तथा आईएमए लखनऊ के अध्यक्ष डॉ. पीके गुप्ता, डॉ. प्रांजल अग्रवाल, डॉ. मनीषा भार्गव उपस्थित थे। कार्यक्रम के अंत में अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. डीके बाजपेई मौजूद थे।