लखनऊ। सोमवार को एसजीपीजीआई कर्मचारी संघ ने पीजीआई प्रांगण में एक कार्यक्रम के दौरान अपनी समस्याओं के निवारण के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ज्ञापन सौंपा।
बताते चलें कि अपनी मांगों को लेकर कर्मचारी संघ साल 2009 से प्रयासरत है एवं पिछले 15 दिनों से यहां के कर्मचारियों ने पहले तो काली पट्टी बांधकर चिकित्सा सेवा न प्रभावित करते हुए निदेशक से अपनी मांगों के पूरा न होने पर विरोध प्रदर्शन किया।
एक निश्चित समय के लिये प्रतिदिन चिकित्सा सेवा प्रभावित न हो इसका ध्यान रखते हुए डायरेक्टर आफिस के पास धरना भी दिया फिर भी कोई सुनवाई न होने पर कर्मचारी संघ प्रतिनिधि मंडल ने सोमवार को डायरेक्टर का घेराव करते हुए अपनी मांगे रखी एवं पूर्ण रूप से निवारण में निदेशक द्वारा असमर्थता बताने पर कर्मचारी संघ ने एक कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री से भी ज्ञापन के माध्यम से गुहार लगाई।
यह है मांग
संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) के कर्मचारी संयुक्त मोर्चा ने संस्थान को पूर्ण रूप से केंद्र की भांति भत्ते इत्यादि पूर्व की भांति स्वीकृत करने की मांग उठाई है। पीजीआई कर्मचारियों का कहना है कि जब से प्रदेश सरकार ने संस्थान में हस्तक्षेप कर प्रथम नियमावली 2011 लागू किया है तब से व्यवस्था में व्यवधान उत्पन्न हो गया है।
एसजीपीजीआई को चिकित्सा सुविधाओं में विश्व स्तर तक पहुंचाने वाले दो दशक से ज्यादा समय से अपना योगदान देने वाले कर्मचारियों को कई सालों से न तो समय से वेतन मिल रहा है, न ही केंद्र सरकार की सुविधाएं, यहां तक कि जब से नियमावली 2011 लागू हुई है तब से कर्मचारियों को भत्ता तक नहीं मिला है। कर्मचारी संघ का यह भी आरोप है कि संस्थान में फैकल्टी और पैरामेडिकल के पदोन्नति में भी काफी पक्षपात किया जाता है। जहां फैकल्टी को 4 साल में ही पदोन्नत कर दिया जाता है वहीं पैरामेडिकल यानी कर्मचारियों को 20 साल कार्यरत होने के बावजूद कोई पदोन्नति नहीं दी जाती है।
यह है नियमावली 2011
दरअसलए साल 2009 तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने एक नियम लागू कर एसजीपीजीआई को प्रदेश सरकार के अधीन कर लिया था और मिल रहे भत्ते इत्यादि पर रोक लगा दी थी, जिसके बाद संस्थान के कर्मचारियों ने इसका भारी विरोध किया। विरोध के चलते संस्थान में तत्कालीन बी एस पी की सरकार द्वारा ताला लगाकर तानाशाही रवैया अपनाया गया और पूरा एसजीपीजीआई छावनी में तब्दील हो गया था।
इसके बाद मायावती को राज्यपाल के हस्तक्षेप के बाद बैकफुट होना पड़ा था। फिर दो साल बाद जब सरकार बदली तब 2011 में समाजवादी पार्टी की सरकार ने एक नियमावली लागू कर एसजीपीजीआई के कर्मचारियों को केंद्र से मिलने वाले वेतन-भत्ता और सुविधाओं को प्रदेश सरकार की स्वीकृति के बाद ही कर्मचारियों को देने का नियम बनाया और उसके बाद स्वीकृति पूरे कार्यकाल में कभी प्रदान नही करीए इसी के विरोध में कर्मचारी संयुक्त मोर्चा मैदान में एक बार फिर से उतर पड़ा है।
संस्थान के कर्मचारी देर से वेतन मिलने और भत्ता व अतिरिक्त सुविधाएं मुहैया न कराये जाने के खिलाफ करीब 15 दिनों से शांतिपूर्ण तरीके से विरोध कर रहे थे जब इससे बात नहीं बनी तो कर्मचारियों ने संस्थान निदेशक राकेश कपूर के दफ्तर को घेरने का फैसला किया। हालांकि, निदेशक ने अलग-अलग कैडर के कर्मचारी नेता को अपने केबिन में बुलाकर बातचीत की और जल्द ही इस मामले में निर्णायक फैसला लाने का आश्वासन दिया।