लखनऊ। लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी से पढ़ी व वही असिस्टेंट नर्सिंग सुपरिटेंडेंट के पद पर कार्यरत शशी बाला सिंह आज की नारी शक्ति के स्वतंत्र सोच दृढ़ इच्छा शक्ति व कभी न थकने वाली जीवन शैली की प्रतिमूर्ति है। वर्ष 1977 में सिर्फ एैपरन पहनने की ललक व मानव सेवा की तत्परता के लिए बस्ती के एक छोटे से ग्राम को छोड़ लखनऊ की ओर बिना किसको का बताए नर्स बनने निकली पड़ी। शशी बताती हैं कि 70 के दशक में गांव की लड़कियों में पढाई का चलन ही नहीं था। उस समय दस से 12 वर्ष की उम्र में लड़कियों की शादी कर दी जाती थी। पिता जी शहर मे रहते थे तो वो चाहते थे की उनकी लड़कियां शहर की लड़कियों की तरह पढ़े, लेकिन मां व पूरा परिवार के साथ-साथ पूरा गांव लड़कियों का कम उम्र मे विवाह कर उसे ससुराल भेजने को ही जीवन मे लड़कियों की सफलता का पैमाना मानते थे। एक बार बीमार पड़ी तो लखनऊ इलाज करवाने आना पड़ा। उस वक्त सरकारी अस्पताल मे नर्सों की यूनिफार्म उनको मिलने वाले स मान व उनकी मानव सेवा की लगन देख मन ही मन नर्स बनने का फैसला लिया। उस वक्त घर छोड़ और स्वयं के जोड़े पैसे व ट्यूशन पढ़ाकर अपने नर्सिंग का चार वर्ष का कोर्स पूरा किया और जीवन बहुत से उतार-चढ़ाओं को देखते हुए आज भी असिस्टेंट नर्सिंग सुपरिटेंडेंट के रूप मे मानव सेवा मे हूं। शशिबाला सिंह ने कई लड़कियों को अपने पैसे से नर्सिंग ट्रेनिंग करवाई आपके द्वारा पढ़ाई गई लड़किया देश के विभिन्न अस्पतालों मे अपनी सेवाएं दे रही है। आज भी अगर कोई लड़की नर्सिंग ट्रेनिंग करना चाहती है तो शशि उनका पूरा सहयोग करती हैं।