लखनऊ। टीबी को जड़ से खत्म करने के लिए सरकार भले ही कड़े कदम उठा रही हो। लेकिन बलरामपुर अस्पताल की तरफ एक बार नजर डालेंगे तो हकीकत खुद ब खुद बयां हो जाएगी। अस्पताल प्रशासन की लापरवाही से यहां टीबी के मरीजों पर संक्रमण का खतरा मंडरा रहा है। वार्ड की जर्जर दीवारें, कायी की जमी हुई मोटी परत, सीलन से उधड़ा हुआ प्लास्टर संक्रमण फैलाने का मूक गवाह है।
बजट मिलते ही जीर्णोद्धार
गौर करने की बात है कि टीबी के मरीजों में पहले से ही रोगों से लडऩे की ताकत कम होंती है, ऊपर से अस्पताल प्रशासन की लापरवाही मरीजों की जान पर बन सकती है। माइक्रोबायोलॉजिस्टों की मानें तो सीलन आदि से दीवारों पर खतरनाक बैक्टीरिया चिपक जाते हैं, जो सांस के जरिए मरीजों के शरीर में दाखिल हो सकते हैं और यह खतरनाक साबित हो सकता है।
इस मामले पर बलरामपुर अस्पताल के निदेशक डॉ. राजीव लोचन ने कहा कि अस्पताल परिसर में नए वार्ड बनाने के लिए सरकार को बजट के लिए प्रस्ताव भेजा गया है। बजट मिलने पर वार्ड का जीर्णोद्धार किया जाएगा।
शौचालय के बाहर पहरा देते है तीमारदार
बलरामपुर अस्पताल में स्वाइन फ्लू वार्ड में कुल 18 बेड हैं, जिसमें से ज्यादातर मरीज टीबी के भर्ती हैं। सुनने में अजीब लगेगा लेकिन यह सच है कि खिड़की और दरवाजे टूटे होने की वजह से लोगों ने ठंड से बचने के लिए खिड़की पर दफ्ती और प्लाई लगा रखी है। यही नहीं आपको तीमारदार शौचालय के बाहर पहरा देते हुए भी दिखाई देंगे क्योंकि दरवाजा टूटा हुआ है।
नमी की वजह से कायी जम गई है। रंगाई-पुताई नहीं हुई है। यहां बेड पर कॉकरोच और कीड़े तक टहलते नजर आते हैं। वार्ड में कुत्ते और बिल्ली घुस जाते हैं। यहां की खस्ताहाल हालत से मरीज और बीमार हो रहे हैं।