नई दिल्ली। स्वास्थ्य मंत्रालय कुल 328 दवाओं को बैन करने जा रही है। जी हां अब आप भी संभल जाइए, आपके इस्तेमाल करने वाली दवाओं जैसे सेरीडॉन, विक्स एक्शन 500 जो आपको सर्दी, जुकाम, बुखार में फटाफट आराम देती थी, सरकार जल्द ही प्रतिबंध लगाने जा रही है। बता दें कि ये ऐसी दवाएं हैं जो लोग अपने घर में इस्तेमाल करने के लिए रखते हैं।
3-4 हजार करोड़ रुपए के कारोबार पर असर
सरकार के इस बैन से करीब 6000 से ज्यादा ब्रांड्स पर असर पड़ेगा। जिनमें सैरीडॉन, डीकोल्ड, फेंसिडिल, जिंटाप जैसी दवाएं शामिल हैं। माना जा रहा है कि इस बैन के बाद इन कंपनियों पर काफी असर होगा। बताया जा रहा है कि दवा बनाने वाली कंपनियों ने 328 फिक्स डोज कॉम्बिनेशन वाली दवाओं के प्रभाव और दुष्प्रभाव का अध्ययन किए बिना ही दवाइयों को बाजार में उतार दिया था, जिससे स्वास्थ्य मंत्रालय नाराज था। इस कदम से सन फार्मा, सिप्ला, वॉकहार्ट और फाइजर जैसी कई फार्मा कंपनियों को तगड़ा झटका लगा है। इस बैन से 3-4 हजार करोड़ रुपए के दवा कारोबार पर असर पड़ेगा।
बिक्री होगी गैरकानूनी
डीएटीबी ने यह सिफारिशें सुप्रीम कोर्ट के पिछले साल दिए गए आदेश पर दी हैं। अब सरकार ने इसे बैन करने की अधिसूचना जारी कर दी है। हालांकि लग रहा है कि कई कंपनियां सरकार के इस आदेश को कोर्ट में भी चुनौती दे सकती हैं। इन 328 दवाओं पर प्रतिबंध लगाने के बाद मेडिकल स्टोर पर इनकी बिक्री गैरकानूनी होगी। अगर किसी मेडिकल स्टोर पर यह दवाएं बिक्री होते हुए पाएं गई तो फिर दवा निरीक्षक अपनी तरफ से उक्त मेडिकल स्टोर संचालक के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज करा सकता है।
इन पर रोक
सेरिडॉन, विक्स ऐक्शन 500, कोरेक्स, सुमो, जीरोडॉल, फेंसिडील, जिंटाप, डिकोल्ड और कई तरह के ऐंटीबायॉटिक्स, पेन किलर्स, शुगर और दिल के रोगों की दवाएं शामिल हैं। अभी और भी कई एफडीसी दवाएं हैं, जो देश में बिक रही हैं। माना जा रहा है कि सरकार 500 और एफडीसी पर रोक लगा सकती है।
यह हैं एफडीसी दवाएं
एफडीसी दवाएं वह होती हैं, जिन्हें दो या दो से अधिक दवाओं को मिलाकर बनाया जाता है। इन दवाओं पर देश में एक लंबे समय से विवाद चल रहा है। हेल्थ वर्कर्स के साथ ही संसद की एक समिति ने भी इन पर सवाल उठाए हैं। समिति का कहना है कि ये दवाइयां बिना मंजूरी और अवैज्ञानिक तरीके से बनाई जाती हैं। इनमें कई ऐंटीबायॉटिक दवाएं भी शामिल हैं। जिन एफडीसी पर विवाद हो रहा है, उन्हें भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल की मंजूरी के बिना ही देश में बनाया और बेचा जा रहा था। इन एफडीसी को राज्यों ने अपने स्तर पर मंजूरी दे दी थी। केंद्र इसे गलत मानता है। उसका कहना है कि किसी भी नई ऐलोपैथिक दवा को मंजूरी देने का अधिकार राज्यों को नहीं है।