नई दिल्ली। मां बनना हर लड़की का सपना होता है। गर्भधारण के समय महिलाओं को काफी सावधानियां बरतनी चाहिए। लेकिन गर्भपात में महिला को मानसिक और शारीरिक दोनों ही तरीकों से परेशान होना पड़ता है। इसे ही हम मेडिकल की भाषा में अबॉर्शन कहते हैं। वैसे तो इसके कई कारण हो सकते हैं। इसमें महिलाओं से जुड़ी समस्याएं ही नहीं पुरुष के शुक्राणुओं की गुणवत्ता व संख्या में कमी से भी हो सकता है। ऐसे में गर्भपात की आशंका होने पर गर्भधारण से दो माह पहले से डॉक्टरी परामर्श लेने की सलाह देते हैं ताकि कुछ बातों को ध्यान में रखकर गर्भधारण से पहले-बाद की समस्याओं को कम किया जा सके।
6 प्रमुख कारण : जिससे है खतरा
1.जेनेटिक डिफेक्ट : अबॉर्शन के 50 प्रतिशत मामले महिला में जेनेटिक डिफेक्ट और बाकी पुरुष में स्पर्म की गुणवत्ता व क्षमता में कमी से होता है।
2. हार्मोंस की कमी : महिला में प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन की कमी होती है तो पहले तीन माह में शिशु में भी इसका अभाव हो सकता है। जिसके लिए हार्मोन थैरेपी देने के साथ खास खयाल रखने की सलाह देते हैं। क्योंकि तीन माह बाद प्लेसेंटा खुद ही जरूरी हार्मोन रिलीज करना शुरू कर देता है जिससे बच्चे में शारीरिक कमजोरी दूर होती है। डायबिटीज और थायरॉयड बीमारी भी गर्भपात के प्रमुख कारण हैं।
3. किसी प्रकार का रोग : ऑटोइम्यून डिजीज, एनीमिया, बुखार आदि वजह बनते हैं।
4. यूट्रस की खराब बनावट : बच्चेदानी की बनावट में खराबी या इसके मुंह के ढीला होने (ऐसा पूर्व में हुआ बच्चेदानी के मुंह से जुड़ा कोई ऑपरेशन, इंफेक्शन, पूर्व में हुई डिलीवरी के समय मुंह पर टांकें न लगने व जन्मजात भी ऐसा हो सकता है) और किसी प्रकार की गांठ होना आदि।
5. ब्लड ग्रुप इंकॉम्पिटेबल : इसमें यदि महिला का ब्लड ग्रुप नेगेटिव व पुरुष का पॉजिटिव हो तो महिला की दूसरी प्रेग्नेंसी में गर्भपात की आशंका बढ़ जाती है।
6. अन्य वजह : शरीर में फॉलिक एसिड, विटामिन-ई और आयरन जैसे पोषक तत्त्वों की कमी, हाई बीपी, पेट के बल गिरना, मलेरिया, हरपीस या टॉर्च जैसे वायरल संक्रमण, थैलेसीमिया या पेशाब का संक्रमण। जिसका पूर्व में अबॉर्शन हो चुका है उसमें 20-40 प्रतिशत दोबारा ऐसा हो सकता है।
दो तरह से होता है इलाज
1. गर्भधारण से पहले : प्रमुख जांचें कराकर डायबिटीज, थायरॉयड, एनीमिया, पोषक तत्त्वों की कमी व इंफेक्शन का पता लगाते हैं और इलाज के बाद ही गर्भधारण की सलाह देते हैं। सोनोग्राफी में बार-बार गर्भपात का कारण जैसे बच्चे की बनावट, गांठ, पर्दा व किसी विकृति का पता चले तो लेप्रोस्कोपी सर्जरी कर ठीक करते हैं। सर्जरी के तीन माह बाद गर्भपात की दर घटती है।
2. गर्भधारण के बाद : वजह के आधार पर इलाज होता है। जैसे इंजेक्शन व दवा के जरिए हार्मोन्स की पूर्ति करते हैं। इंफेक्शन की स्थिति में एंटीबायोटिक्स देते हैं। यूट्रस के ढीले मुंह को प्रसव तक सील देते हैं। महिला को आराम करने, पोषक तत्त्वों की पूर्ति के लिए हरी पत्तेदार सब्जियां, फल, अंकुरित अनाज व दालें खाने के लिए कहते हैं। कुछ माह व हफ्तों के अंतराल में सोनोग्राफी से स्थिति का पता लगाते हैं।
लक्षणों को पहचानें
गर्भपात होने की स्थिति में महिला को बेचैनी, पेट में ज्यादा दर्द, रक्तस्त्राव, सफेद पानी के साथ रक्त आना, कभी-कभी रक्त के थक्के गिरना आदि परेशानियां हो सकती हैं।