लखनऊ। भारत में ब्रेन कैंसर के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। इन मामलों में 20 फीसदी बच्चों में पाए जा रहे हैं जो कि पिछले साल के मुकाबले 5 फीसदी की बढ़ोतरी है। ब्रेन कैंसर को लेकर लोगों की यह अवधारणा कि अब जीवन खत्म है, यह बिल्कुल भी गलत है। यही समय पर सही उपचार जीवन बचाती है। हर साल ब्रेन कैंसर के करीब 40 से 50 हजार मामले सामने आते हैं।
उक्त बातें एक होटल में आयोजित कार्यशाला में डॉ. राम मनोहर लोहिया संस्थान ऑफ मेडिकल साइंसेज के रेडियो ओकोलॉजिस्ट डॉक्टर अजीत कुमार गांधी ने कही। उन्होंने कहा कि ब्रेन कैंसर इमेजिंग स्कैन्स, रेडिएशन, विशाक्त रासायनों के संपर्क में आने से फैल रहा है। यह आनुवांशिक कारण से भी हो सकता है। यह बात भी लोगों के द्वारा सामने आ रही है कि मोबाइल के प्रयोग से भी ब्रेन ट्यूमर का खतरा है, लेकिन इसे लेकर शोध जारी है।
प्रकार
ब्रेन कैंसर आमतौर पर दो प्रकार के होते हैं। मेनिंजियोमा और ग्लियोमा कैंसर दिमाग के और मेरूदंड के आसपास की में ब्रेन केे प्रभावित करता है। बता दें कि ग्लियोमा कैंसर ब्रेन तथा मेरूदंड की ग्लियल कोशिकाओं को प्रभावित करती है। इसके अलावा डॉक्टर अजीत कुमार गांधी ने कहा कि कुछ ऐसे भी कैंसर होते हैं जो कि शरीर के किसी अन्य हिस्से में हो, वो भी मस्तिष्क तक पहुंच जाते हैं जबकि ब्रेन कैंसर शरीर के किसी अन्य हिस्से को प्रभावित नहीं करता है। कैंसर के प्रति जागरुकता को बढऩा देने कि लिए डॉक्टर गांधी ने कहा कि यह पीडि़त के साथ उठने-बैठने या फिर साथ खाने पीने से बिल्कुल भी नहीं फैलता है।
लक्षण
कई दिन तक सिर में तेज दर्द का होना।
सुबह उठते ही तेज दर्द का होना और 2-3 घंटे के बाद अपने आप खत्म होना।
तेज सिर दर्द के साथ उल्टी आना।
मिर्गी के झटके आने पर जांच कराएं।
शरीर के किसी भी अंग में अचानक कमजोरी का होना।
व्यवहार में अचानक परिवर्तन का आना।
इस टेस्ट से चलेगा पता
ब्रेन कैंसर का पता कई प्रकार के टेस्ट से करा सकते हैं। इसमें न्यूरोलॉजिक परीक्षा, एंजियोग्राम, स्पाइनलटैप, सीटी स्कैन और एमआरआई कंट्रास्ट के साथ।
ऑपरेशन की विधि
ऑपरेशन मरीज के ग्रेड पर निर्भर होता है। डॉक्टर के लिए यह जानना बहुत जरूरी होता है कि मस्तिष्क के कौन से हिस्से में ट्यूमर है। ऑपरेशन के लिए ट्यूमर की पूरी जानकारी लेने के बाद ऑपरेटिंग माइक्रोस्कोप की तकनीक से ऑपरेशन करते हैं। इसमें मरीज को बेहोश कर दिया जाता है। दूसरी विधि अवेक सर्जरी है जिसमें मरीज को बेहोश नहीं किया जाता। डॉक्टर मरीज से बात कर सकते हैं। तीसरी विधि है मैक्सिमम सेफ सर्जरी की। इसमें ट्यूमर का आकार देखा जाता है और उसके बाद ट्यूमर को बाहर निकाला जाता है। इसमें इस बात का ध्यान दिया जाता है कि ऑपरेशन के बाद मरीज का कोई अंग प्रभावित ना हो।