लखनऊ। ऑटिज्म एक प्रकार का मानसिक रोग है जो विकास से सम्बंधित विकार है, जिसके लक्षण जन्म से या बाल्यावस्था यानी प्रथम तीन वर्षों में ही नजर आने लगते हैं। ये आजीवन न्यूरोलॉजिकल स्थिति है जो लिंग, जाति या सामाजिक-आर्थिक स्थिति के बावजूद बचपन में हो जाती है। उक्त बातें लखनऊ के वरिष्ठ मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. मोहम्मद अलीम सिद्दिकी ने मंगलवार को विश्व आटिज्म जागरुकता दिवस (2 अप्रैल) पर कही।
68 में से एक बच्चे को आटिज्म
आटिज्म स्पीक्स के अनुसार 68 बच्चों में से एक बच्चा आटिज्म से पीडि़त होता है। यह बीमारी पीडि़त व्यक्ति की सामाजिक कुशलता और संप्रेषण क्षमता पर विपरीत प्रभाव डालता है। इस रोग से पीडि़त बच्चों का विकास अन्य बच्चों की अपेक्षा असामान्य होता है। ऐसे बच्चे एक ही काम को बार-बार दोहराते हैं। इन सब समस्याओं का प्रभाव व्यक्ति के व्यवहार में भी दिखाई देता है, जैसे कि व्यक्तियों, वस्तुओं और घटनाओं से असामान्य तरीके से जुडऩा।
ऐसा होता है
ऑटिस्टिक बच्चों में सीमित रुचि होती हैं और भाषा होती है जिसके कारणवश वह कई बार अपनी बात न तो ठीक से समझा पाते हैं और ना ही बोल पाते हैं। दूसरे लोगों से मिलने जुलने में भी दिक्कत होती है और उनकी सामाजिक कौशल भी कम होता है जिसके कारणवश वह सामाजिक तौर तरीके नहीं सीख पाते। कई कामों और बातों को वह बार-बार कहते और करते हैं जिसका प्रत्यक्ष रूप से कोई फायदा नहीं होता।
नर्वस सिस्टम में बदलाव
डॉ. अलीम ने कहा कि घर वालों के हिसाब से वह भावनात्मक रूप से कम संबंध रख पाते हैं और अलग-थलग रहते हैं। आंख से आंख मिलाकर बात करने में भी दिक्कत होती है और कई बार ऐसा प्रतीत होता है की बच्चा बहरा है क्योंकि वह अपने नाम को बुलवाने पर जवाब नहीं देते हैं। यह सब नर्वस सिस्टम में बदलाव के कारण होता है तभी आटिज्म और उससे मिलते-जुलती दिक्कतों को न्यूरो डेवलपमेंटल दिक्कतों के अंतर्गत रखा गया है।
ऑटिज्म बीमारी के लक्षण
पीडि़त व्यक्ति मानसिक रूप से विकलांग हो सकता है। रोगियों को मिर्गी के दौरे पड़ सकते हैं। पीडि़त व्यक्ति को सुनने और बोलने में दिक्कत हो सकती है। इस बिमारी को ऑटिस्टिक डिस्ऑगर्डर के नाम से भी जाना जाता है, यह तब बोलते है जब बिमारी काफी गंभीर रूप ले चुकी हो। परन्तु जब यह बिमारी ज्यादा प्रभावी ना हो तो इसे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिस्ऑर्डर (्रस्ष्ठ) के नाम से बुलाते है।
ऑटिज्म के मुख्य कारण
वैज्ञानिकों को अनुसार एक दोषपूर्ण जीन या किसी जीन के कारण एक व्यक्ति को आत्मकेंद्रित या ऑटिज्म बीमारी विकसित होने की अधिक संभावना बना सकता है। कुछ अन्य कारक भी इस बिमारी के लिए हो सकते हैं, जैसे रासायनिक असंतुलन, वायरस या रसायन, या जन्म पर ऑक्सीजन की कमी का होना आदि। कुछ मामलों में ऑटिस्टिक व्यवहार गर्भवती मां में रूबेला (जर्मन खसरा) के कारण भी हो सकता है।