लखनऊ/लखीमपुर। मां का दूध नवजात के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है लेकिन यह भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है कि जब महिला नवजात को स्तनपान कराये तो वह भी आरामदायक स्थिति में हो कि नवजात को ठीक से स्तनपान करा पाये और शिशु की भी स्थिति ऐसी हो कि उसे स्तनपान करने में मुश्किल न हो। जन्म के बाद, पहले सप्ताह में शिशु को हर दो घंटे पर स्तनपान कराना चाहिए। चिंता एवं तनाव मुक्त रहकर, धैर्य व संयम के साथ बच्चे को स्तनपान कराना चाहिए ताकि दूध का स्राव सरलता से हो सके।
अचेतन अवस्था में बच्चे की सांस की नली में दूध के जाने का खतरा
राज्य स्तरीय प्रशिक्षक व रानी अवन्तीबाई जिला महिला अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सलमान का कहना है कि मां जिस स्थिति में आराम महसूस करे बच्चे को स्तनपान करा सकती है। स्तनपान कराते समय मां व बच्चे दोनों को ही चैतन्य होना चाहिए क्योंकि अचेतन अवस्था में बच्चे की सांस की नली में दूध के जाने का खतरा रहता है। यदि बच्चे का जन्म समय से पूर्व हुआ हो या उसका वजन 1800 ग्राम से कम हो तो, इस स्थिति में मां को अपना दूध निकालकर कटोरी चम्मच से बच्चे को पिलाना चाहिए क्योंकि ऐसे शिशु स्तनपान ठीक से नहीं कर पाते हैं। शिशु को बोतल से दूध नहीं पिलाना चाहिए। अक्सर बच्चे स्तनपान के दौरान हवा भी अंदर खीच लेते हैं और बाद में दूध पलट देते हैं इसलिए बच्चे को स्तनपान कराने के बाद कंधे से लगाते हुये पीठ पर हौले से थपकी देते हुये डकार दिलानी चाहिए ताकि स्तनपान करते समय बच्चे के पेट में गई हवा बाहर निकल जाए।
मां ऐसा जरूर करें
डॉ. सलमान बताते हैं कि जब भी मां बच्चे को स्तनपान कराये तो मां को बच्चे को अपने शरीर से सटाकर पकडऩा चाहिए, बच्चे का मुंह और शरीर मां की तरफ मुड़ा हुआ हो। मां ने बच्चे की गर्दन, पीठ और कूल्हे को सहारा दे रखा हो। बच्चे का मुंह पूरी तरह खुला हुआ हो, स्तन का काला हिस्सा और निप्पल पूरा बच्चे के मुंह में हो और बच्चे की ठोढ़ी छाती से छूती हो व निचला होंठ बाहर की तरफ उल्टा हो। जब मां शिशु को स्तनपान कराना शुरू करती है तब वह शिशु को स्तन से लगाना सीखती है और शिशु स्तन को मुंह में लेना सीखता है। मां को धैर्यपूर्वक एक ही स्तन से दूध पिलाना चाहिए।
शिशु एक बार 5-20 मिनट तक स्तनपान करते हैं
शिशु एक स्तन से पीने के बाद यदि चाहता है उसे दूसरे स्तन से भी दूध पिलाएं। अधिकांश शिशु एक बार 5-20 मिनट तक स्तनपान करते हैं। कई बार शिशु एक स्तन से दूध पीकर ही संतुष्ट हो जाते हैं अत: दूसरी बार उसे दूसरे स्तन से दूध पिलाना चाहिए। शुरुआत में आने वाले दूध को फोर मिल्क कहते हैं और उसमें 90 फीसदी पानी की मात्रा होती है और बाद में आने वाले दूध को हाइंड मिल्क कहते हैं और यह पौष्टिक होता है।
जिला स्तरीय प्रशिक्षक व जिला स्वास्थ्य शिक्षा एवं सूचना अधिकारी योगेश रघुवंशी बताते हैं कि स्तनपान कराने के दौरान कुछ प्रतिक्रियाएं घटित होती हैं।
रूटिंग रिफ्लेक्सेस- जब शिशु के होंठों को छुआ जाता है, तो अपना मुंह खोलकर जीभ को बाहर व नीचे करता है। जिससे वह आसानी से स्तन तक पहुंच जाये।
सकिंग रिफ्लेक्सेस- मां का निप्पल जब शिशु को तालू को छूता है, तो वह स्तन को खींचकर मुंह में अंदर कर लेता है।
गैग रिफ्लेक्सेस- जब शिशु के जीभ के अगले भाग में निप्पल छूता है। तो वे उसे बाहर धकेल देता है।
स्वलोइंग रिफ्लेक्सेस- जब शिशु के मुंह में दूध भर जाता है, तो वह उसे निगलने लगता है।
योगेश बताते हैं कि शिशु को जन्म के तुरन्त बाद जितनी जल्दी हो सके स्तनपान कराना चाहिए। मां का पहला दूध, जिसे कोलोस्ट्र्म या खीस कहते हैं जरूर दें, क्योंकि यह शिशु की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। शिशु को 6 माह तक केवल माँ का दूध पिलाएं। मां के दूध में बच्चे के लिए सभी जरूरी पोषक तत्वों के अलावा पानी भी पर्याप्त मात्रा में होता है। अत: 6 माह तक शिशु को पानी भी न पिलाएं, यहां तक की गर्मियों में भी नहीं।
शिशु के लिए फायदेमंद
मां के दूध से डायरिया से बचाव होता है, सुपाच्य होने के कारण शिशु में पेट की गड़बड़ी होने की आशंका नही रहती। मां का दूध बच्चे के दिमाग के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देता है। माँ का दूध बच्चे को उसी तापमान में मिलता है, जो उसके शरीर का है, इससे शिशु को सर्दी नहीं लगती है। यह शिशु को ठंडा होने से बचाता है। योगेश बताते हैं कि स्तनपान कराने से जहां बच्चे को लाभ मिलता है वहीं मां को भी इससे फायदे होता है।
मां को भी फायदा
स्तनपान कराने वाली महिलाएं को तनाव कम रहता है, प्रसव के बाद रक्तस्राव व एनीमिया से बचाव करता है। इससे माताओं को स्तन या गर्भाशय के कैंसर का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है। स्तनपान कराना एक प्राकृतिक गर्भनिरोधक भी है। स्तनपान कराने से मां और शिशु के मध्य भावनात्मक रिश्ता मजबूत होता है। शिशु अपनी मां को जल्दी पहचानने लगता है। चूंकि स्तनपान कराने में अधिक कैलोरी का उपयोग होता है अत: यह प्राकृतिक रूप से वजन कम करने में और शरीर को सुडौल बनाने में मदद करता है।