लखनऊ। आज के दौर में खानपान के चलते लीवर की समस्या बढ़ती जा रही है। सही निदान और चिकित्सा के अभाव में क्रॉनिक लिवर डिजीज एक असाध्य रोग के रूप में पूरे विश्व के लिए चिंता का विषय बन गया है। एक अध्ययन के मुताबिक पूरी दुनिया में लगभग 70 फीसदी लोग फैटी लिवर से पीडि़त हो रहे हंै। यह विचार मुख्य अतिथि और अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान नई दिल्ली की निदेशक प्रोफेसर तनुजा मनोज नेसरी ने व्यक्त किए।
कच्चा पपीता, अनार, आंवला का करें प्रयोग
उन्होंने कहा कि अग्नि का मूल स्थान यकृत है और उसकी सुरक्षा के लिए खाने में मकोय और पुनर्नवा का हरा साग शामिल करें। कच्चा पपीता, अनार, आंवला का प्रयोग किया जाना भी लाभकारी साबित होता है। औषधियों में गुडुची मूईं आमला, कटुकी का प्रयोग लीवर को सुरक्षित रखता है। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि एवं खाना खजाना से विश्वविख्यात संजीव कुमार कपूर ने भी अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि किसी भी रोग के उपचार या उसके खानपान की बात हो उसे सरलता से सभी लोगों तक पहुंचाना जरूरी होता है।
राष्ट्रीय अध्यक्ष बने धर्मवीर
कार्यक्रम के पांच वैज्ञानिक सत्रों में देश के विभिन्न प्रांतों और संस्थानों से आयुर्वेद विशेषज्ञ शामिल हुए हैं। डॉक्टर अशोक कुमार पांडा भुवनेश्वर (उड़ीसा), प्रोफेसर जीडी अग्रवाल, डॉ धर्मवीर, डॉ राजेंद्र प्रसाद, शिव शंकर त्रिपाठी लखनऊ, डॉक्टर सी पी सिंह आदि वक्ताओं सहित अनेक पीजी स्कॉलर्स ने अपने शोध पत्र स्लाइड के माध्यम से 33 की संख्या में प्रस्तुत किए। संगोष्ठी के बाद अखिल भारतीय आयुर्वेद विशेषज्ञ (स्नातक) सम्मेलन की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक संपन्न हुई। जिसमें नवीन कार्यकारिणी का गठन किया गया। इसमें राष्ट्रीय अध्यक्ष धर्मवीर, महामंत्री अग्रवाल और उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष लखनऊ के डॉ. शिव शंकर त्रिपाठी सहित देश के 15 प्रांतों के अध्यक्ष मनोनीत किए गए।
पुस्तक का विमोचन
उद्घाटन कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफेसर एसडी दुबे सेवानिवृत्त विभाग अध्यक्ष ने की। उद्घाटन सत्र में ही आयुर्वेद विशेषज्ञ सम्मेलन की स्मारिका आयुर्वेद एवं योग तथा डॉ. शिवानी धिल्डियाल आल द्वारा लिखित ‘हिपैटो प्रोटेक्टिव हब्र्स फ्राम आयुर्वेदÓ पुस्तक का विमोचन भी किया गया। कार्यक्रम के अंत में अध्यक्ष डॉ धर्मवीर ने बताया कि अखिल भारतीय आयुर्वेद विशेषज्ञ स्नातकोत्तर सम्मेलन के स्थापना 41 साल पहले की गई थी।