लखनऊ। केजीएमयू में अब दांत लगवाने के लिए आपको ज्यादा समय नहीं देना होगा। यहां के डॉक्टरों ने एक नया इंप्लांट शुरू किया है। ऐसे में अब मरीजों को 24 घंटे में दांत लगाए जा सकेंगे। पहले लंबे समय तक मरीजों को इंतजार करना पड़ता था लेकिन यह समस्या अब खत्म हो गई है।
यह है नई तकनीक
डेंटल सर्जरी विभाग के डॉ. यूएस पाल ने शनिवार को आयोजित प्रेसवार्ता में बताया कि बेसल इंप्लांट उत्तर भारत की नई तकनीक है। बेसल का मतलब होता है एल्वीओलर अर्थात मुंह का वह हिस्सा जहां पर दांत हैं। बेसल इम्प्लांट मुंह के उसी भाग में लगाया जाता है, जो जबड़े के नीचे का हिस्सा है। इस तकनीक में जबड़ों के उस हिस्से में भी इंप्लांट या दांत लगाए जा सकते हैं, जहां हड्डी न हो। किसी भी इम्प्लांट के लिए जबड़ों में हड्डी की जरूरत होती है, जिस पर ग्राफ्ट लगाकर दांत लगाए जाते हैं। डॉ. पाल ने बताया कि कन्वेंशनल इम्प्लांट में दांत लगाने में करीब चार से पांच माह का समय लगता था। मरीज को लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता था।
खर्च होगा कम
मरीजों को समय देने के साथ खर्च भी ज्यादा होता था। कन्वेंशनल इंप्लांट्स के जरिए बत्तीसी लगाई जाए तो उसमें करीब 80 हजार रुपये का खर्च आता था। वहीं, बेसल इंप्लांट तकनीक से बत्तीसी लगाई जाए तो उसमें करीब 35 हजार रुपये तक का खर्च आता है। यह 24 घंटे के अंदर दांत को लगा सकता है, जो कि कन्वेंशनल इंप्लांट में संभव नहीं है।
इनको भी फायदा
डॉ. पाल डायबिटीज और मुंह के कैंसर से पीडि़त मरीजों लिए बेसल इंप्लांट लाभदायक साबित हो सकता है। कैंसर मरीजों में एल्वीओलर हड्डी काट कर हटा दी जाती है। इसके अलावा डायबिटीज के रोगियों में भी पायरिया होने की आशंका अधिक होती है। इन रोगियों में बेसल बोन में इंप्लांट डालकर दांत लगाना बहुत ही आसान तरीका है।
डॉक्टर ने यह भी कहा
डॉ. लक्ष्य के मुताबिक अभी तक बत्तीसी लगाने के लिए मुंह की नाप लेकर उसका एक कॉस्ट बनाकर मॉडल बनाना पड़ता था। इसके बाद इंप्लांट लगाया जाता था। इसमें समय लग जाता था। बेसल इन प्लांट में यह काम डिजिटल रूप से किया जा सकता है। इस इंप्लांट में मरीज के दांत के नाप को स्कैन कर उसका मॉडल बना सकते हैं। इसमें समय भी नहीं लगता और काम भी आसानी से हो जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में खर्चा कम आता है।