लखनऊ। पीजीआई के रेजिडेंट्स डॉक्टरों ने विरोध जताने का एक अनोखा तरीका अपनाया है। यहां डॉक्टरों ने शनिवार को रक्तदान कर विरोध दर्ज कराया। रक्तदान के साथ ही सरकार से मांग की है कि एम्स दिल्ली के समान वेतन और भत्ते दे। पूरे दिन चले शिविर में करीब 100 डॉक्टरों ने रक्तदान कर सरकार के खिलाफ विरोध दर्ज कराया। संस्थान स्थित ब्लड बैंक में प्रात: 9 बजे से शाम 5 बजे तक रक्तदान शिविर में केजीएमयू और लोहिया संस्थान के रेजीडेंट्स भी शामिल थे।
रेजिडेंट के साथ सरकार सौतेला व्यवहार
रेजीडेट डॉक्टर्स एसोसिएशन की कोर कमेटी के अध्यक्ष डॉ.आशुतोष पाराशर, उपाध्यक्ष डॉ. आकाश माथुर, संयोजक डॉ. अनिल गंगवार, सचिव डॉ. अक्षय और प्रवक्ता डॉ. अजय शुक्ला का कहना है कि उनकी लड़ाई जायज है। 29 जनवरी को योगी सरकार द्वारा प्रयागराज में कैबिनेट में संकाय सदस्यों और सभी संवर्ग के कर्मचारियों को एम्स के बराबर वेतन और भत्ते देने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गयी। तो फिर रेजिडेंट के साथ सरकार सौतेला व्यवहार क्यों किया जा रहा है। जबकि रेजीडेंट डॉक्टर पीजीआई में अहम जिम्मेदारी निभाते हैं, 14 से 18 घंटे काम करते हैं।
पौधरोपण का कार्यक्रम
डॉ. अनिल गंगवार बताते हैं कि रेजिडेंट द्वारा संघर्ष की पूरी रणनीति तैयार कर ली गयी है। इसका आगाज शनिवार को रक्तदान से शुरू हुआ है। पीजीआई के रेजिडेंट के समर्थन में किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय और डॉ. राम मनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट के रेजीडेंट्स डॉक्टर भी आ गये हैं। आगे अब पौधरोपण का कार्यक्रम करेंगे।
डॉ. गंगवार बताते हैं कि विरोध के पीछे कारण यह है कि है कि सैद्धांतिक रूप से सरकार द्वारा रेजीडेंट्स डॉक्टरों को न तो शैक्षणिक कर्मचारी माना है और न ही गैर शैक्षणिक क्योंकि मास्टर डिग्री और सुपर स्पेशियलिटी की डिग्री लेने के लिए रेजीडेंट्स डॉक्टरी एक जरूरी हिस्सा है और इसके लिए रेजीडेंट्स डॉक्टर की नियुक्ति तीन साल के लिए अस्थायी रूप से की जाती है।