लखनऊ। नए शोध से मानसिक बीमारियों को रोकने के साथ-साथ बचाव में भी योग और ध्यान की भूमिका होने का संकेत मिला है। यह बातें बंगलूर के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेन्टल हेल्थ एण्ड न्यूरो के निदेशक डॉ. बीएन गंगाधर ने एक शोध का हवाला देते हुए कही। डा. गंगाधर ने कहा कि मानसिक बीमारियों को रोकने में योग और ध्यान कारगर है। वह शनिवार को इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में इंडियन साइकिएट्रिक सोसाइटी के 71 वें वार्षिक राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे।
भयानक घटनाओं से उबरने में विफलता का कारण
अमेरिकी मनोचिकित्सक और नशा मुक्ति विशेषज्ञ डॉ. अश्विन ए पाटकर ने अवसाद और व्यसन पर संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए कहा कि किसी व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य न केवल व्यक्ति स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता के लिए ही महत्वपूर्ण है, बल्कि यह देश की आर्थिक उत्पादकता और आर्थिक स्वास्थ्य का भी एक महत्वपूर्ण पहलू है। मिशिगन विश्वविद्यालय से प्रसिद्ध अमेरिकी मनोचिकित्सक डॉ. ब्रायन मार्टिस ने पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर पर बोलते हुए कहा कि यह एक विकार है जो भयानक घटनाओं से उबरने में विफलता का कारण होता है। अक्सर यह विकार युद्ध से लौटे सैनिकों में देखा जा सकता है।
बैंगलोर से डॉ. सुरेश बाड़ा मठ ने मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 की चुनौतियों और अवसरों पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया और बताया कि इसका उद्देश्य मानसिक बीमारियों को लेकर लोगों में व्याप्त भ्रान्ति एवं भेदभाव को नष्ट करना है और सभी के लिए समानता का अधिकार उपलब्ध कराना है। भोपाल की प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉ. रजनी चटर्जी ने महिला मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बात की।
वैधीकरण के प्रभावों पर चर्चा
पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ के प्रबुद्ध मनोचिकित्सक डॉ. अभिषेक घोष ने हमारे देश में कैनाबिस (भांग का पौधा) के वैधीकरण के प्रभावों पर चर्चा की। असम से डॉ. मयूरी बर्गहाइन ने किशोर आबादी को नशे की लत से बचाने के लिए प्रारंभिक हस्तक्षेप और निवारक रणनीतियों की आवश्यकता पर चर्चा की। प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉ. आलोक एन घनाटे ने इंटरनेट डीएडीक्शन के बारे में बात की। उन्होंने बताया कि इंटरनेट की लत को हाल ही में डब्ल्यूएचओ ने एक विकार के रूप में मान्यता दी है और यह केवल एक बुरी आदत कह कर नकारने से काम नहीं चलेगा।