नई दिल्ली। टाइफाइड हमारे देश में बड़ी समस्या है। लाखों लोगों की मौत का कारण टाइफाइड बन रहा है। टाइफाइड हर उम्र के लोगों को प्रभावित कर सकता है। यह एक संक्रामक बीमारी है। यह कैसे फैसता है और इससे कैसे बचा जाए, इस लेख में हम आपको इसकी पूरी जानकारी देंगे।
यह कहता है डब्ल्यूएचओ
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक हर साल दुनियाभर में टाइफाइड बुखार के 1.1 करोड़ से लेकर 2.1 करोड़ मामले देखने को मिलते हैं। इनमें से 1.28 लाख से लेकर 1.61 लाख लोग टाइफाइड संक्रमण के कारण मौत के मुंह में समा जाते हैं। डब्ल्यूएचओ के नवंबर 2010 के अध्ययन के मुताबिक भारत में टाइफाइड प्रति एक लाख आबादी में 493.5 लोगों को प्रभावित करता है। यह वियतनाम (24.2 प्रति लाख), चीन (24) और इंडोनेशिया (180.3) की तुलना में कहीं ज्यादा है।
दूषित भोजन और पानी से फैलता है
टाइफाइड जीवाणु (बैक्टेरिया) से होने वाला संक्रमण (इन्फेक्शन) है जिसकी वजह सालमोनेला एंटेरिका होता है। यह दूषित भोजन और पानी के जरिये फैलता है। यह बीमारी दक्षिण पूर्व एशिया और दक्षिण एशिया के देशों में बहुत आम है। टाइफाइड के जीवाणु को यहां बारिश के मौसम में फैलने का ज्यादा मौका मिलता है। आइए जानें टाइफाइड क्या है और यह कब जानलेवा हो जाता है। आप इसके संक्रमण से बचने के लिए क्या कर सकते हैं।
टाइफाइड बुखार क्या है?
तेज बुखार, सिरदर्द, उबकाई आना, भूख कम होना, कब्ज और डायरिया, टाइफाइड के मुख्य लक्षण हैं। संक्रमण ज्यादा हो जाए तो मरीज की नाक से खून निकलने लगता है, शरीर पर खराश के निशान (रोजी स्पॉट्स) उभरने लगते हैं, मतिभ्रम, असमंजस और एकाग्रता गंवाने की स्थिति आ जाती है। माय उपचार डॉट कॉम से जुड़े एक चिकित्सक डॉ। आयुष पांडे के मुताबिक, कुछ बहुत ही चुनिंदा मामलों में गंभीर टाइफाइड संक्रमण जटिलताओं को बढ़ा देता है और मौत तक की वजह बन सकता है। 2 से 5 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों पर इसका खतरा ज्यादा होता है। गंभीर टाइफाइड तो बड़े लोगों में भी हो सकता है।
पहचान और उपचार
टाइफाइड का संक्रमण सामान्यतया 14 दिन तक कायम रहता है। आमतौर पर पाखाने (स्टूल) के नमूने के परीक्षण से पता चलता है कि यह है या नहीं। अगर इससे बात नहीं बनती तो डॉक्टर एलिसा-टीवाय टेस्ट की सिफारिश भी कर सकते हैं। ताकि पता चल सके कि रक्त में टाइफाइड के एंटीबॉडीज हैं या नहीं। हमारा शरीर नुकसानदेह बैक्टेरिया को बाहरी हमलावर या एंटीजेन्स के तौर पर पहचानता है और हमले को नाकाम करने के लिए तत्काल एंटीबॉडीज का उत्पादन शुरू कर देता है। कई बार इन एंटीबॉडीज का टेस्ट भी डॉक्टरो को रोग की पहचान में मदद करता है।
यह जरूरी बात
उपचार मुख्यतया एंटीबायोटिक्स पर ही निर्भर करता है, हालांकि जरूरी है कि यह डॉक्टर की सलाह पर ही लिया जाए ताकि टाइफाइड लौटकर (रिलेप्स) न आए। इसी साल की शुरुआत में पाकिस्तान में तो दवा प्रतिकारक (ड्रग रेजिस्टेंस) टाइफाइड देखने को मिला। यह स्थिति उन मरीजों में देखने को मिली जिन्होंने दवाएं तो लीं लेकिन डॉक्टर द्वारा तय एंटीबायोटिक्स के डोज को पूरा नहीं किया। बहुत ज्यादा संक्रमण की स्थिति में इंट्रावेनस इंजेक्शन और अस्पताल में भर्ती करने की भी जरूरत पड़ सकती है।
रोकथाम और स्वास्थ्य लाभ
बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण उन पर अधिकांश संक्रमणों का खतरा बहुत ज्यादा होता है। टाइफाइड भी उनमें से ही एक है। डॉ. पांडे का कहना है कि अगर आपके बच्चे को बुखार है तो उसके बुखार को वक्त-वक्त पर नोट करें। शरीर का तापमान 102 डिग्री फैरेनहाइट के ऊपर जाए तो उसे तत्काल डॉक्टर के पास ले जाएं।
संक्रामक बीमारी
टाइफाइड एक बेहद संक्रामक बीमारी है। पिछले कुछ सालों में हालांकि भारत में टाइफाइड के मरीजों की संख्या में गिरावट देखने को मिल रही है, लेकिन बेहतर होगा कि बोतलबंद पानी या उबाला हुआ पानी ही पिएं। हाथों को अच्छी तरह से धोएं। कच्चे फल और सब्जियां टालें। बारिश के मौसम में स्ट्रीट फूड टालें।
ओरल वैक्सीन लेनी चाहिए
अब टाइफाइड बुखार के टीके भी उपलब्ध हो गए हैं। इसमे टाइफाइड कांजुगेट वैक्सीन (टीसीवी), वीआई-पीएस वैक्सीन (इंजेक्शन के जरिये दिया जा सकता है) और टीवाई 21 ए (लाइव, ओरल) वैक्सीन शामिल हैं। अमेरिकी रोग नियंत्रण व बचाव केंद्र (सीडीसी) के मुताबिक इंजेक्शन का बूस्टर शॉट हर दो साल में लगा लेना चाहिए और ओरल वैक्सीन हर पांच साल में एक बार ली जानी चाहिए। टाइफाइड के टीके 80 प्रतिशत प्रभावी पाया गया है।