हमारे फेफड़े अगर सही काम कर रहे हैं तो शरीर भी आपका स्वस्थ रहेगा। हमारे शरीर का एक अहम अंग फेफड़ा है। इससे व्यक्ति साफ व शुद्ध हवा सांस के रूप में लेता है। जब फेफड़े बीमारी के शिकार हो जाते हैं तो कार्बन डाइऑक्साइड निकालने और पर्याप्त ऑक्सीजन लेने का काम सही तरीके से नहीं कर पाते हैं।
लंग्स इंफेक्शन की स्थिति
फेफड़े का काम सांस व भीतर पहुंच रही दूषित हवा को साफ करना है जिसके बाद यह रक्त में ऑक्सीजन बनकर मिलती है। लेकिन दूषित हवा के बीच सांस लेने से जब दूषित कण नाक व मुंह के साथ श्वास नलिका व फेफड़े तक को संक्रमित करते हैं तो यह लंग्स इंफेक्शन की स्थिति बनती है।
तीन तरह के संक्रमण
मुख्यत: तीन तरह का संक्रमण फेफड़ों पर असर करता है। बैक्टीरियल, वायरल और पैरासिटिक। इस इंफेक्शन से कई बार फेफड़ों में पानी भरने की भी तकलीफ सामने आती है। श्वास नलिकाएं दो हिस्सों में बंटी होती है जिसे ट्रैकिया कहते हैं। साथ ही नाक से गले तक के सभी छोटे और बड़े अंगों का काम ऑक्सीजन की अदला-बदली से होता है। ऐसे में सीने या फेफड़ों में होने वाला किसी भी तरह का संक्रमण फेफड़ों को कमजोर करता है। जिससे सांस लेने में तकलीफ होने लगती है।
एलोपैथी में उपचार
सीने या फेफड़ों में इंफेक्शन को जल्द ठीक करने के लिए विभिन्न तरह की एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं। संक्रमण होने पर रोगी को ठंडा व बासी खाने से परहेज करना चाहिए। संक्रमण का स्तर बहुत अधिक होने पर रोगी को अस्पताल में भर्ती कर उसकी देखरेख करते हैं। दूषित वातावरण से बचाने के लिए मरीज को स्पेशल केयर भी दी जाती है। फेफड़ों में संक्रमण होने पर ब्लड की कुछ जांचें, सीने का एक्स-रे, बलगम की जांच और गंभीर परिस्थिति में सीने का सीटी स्कैन भी कराते हैं।
ऐसे होता असर
खांसी होना कोई रोग नहीं है लेकिन यह रोगी होने का संकेत हो सकता है। फेफड़ों में श्वास नलिका के साथ वायु कोशिकाएं होती हैं जिनसे हवा छनकर अंदर जाती है व अशुद्ध हवा बाहर निकलती है। यहां मौजूद सीलिया (बरौनी) हानिकारक तत्त्वों को बाहर निकालती हैं। इस दौरान कोई भी बाहरी तत्त्व के फेफड़ों में जाने से खांसी आती है। लंबे समय तक यह समस्या बनी रहे तो सीलिया के क्षतिग्रस्त होने से सांस संबंधी रोग जैसे सीलिया, निमोनिया, ब्रॉन्काइटिस की आशंका बढ़ती है। दिक्कत बने रहने से संक्रमण दूसरे अंगों में भी फैलता है। जो आगे चलकर रेस्पिरेटरी अटैक का कारण बनता है। डॉक्टरी सलाह पर दवाएं लें।
समय पर हो पहचान
लंबे समय तक खांसी, सांस लेने में तकलीफ, थोड़ी देर काम करने पर थकान, सीढ़ी चढऩे पर सांस फूलने, कफ के साथ खून आने, गले में दर्द, अनिद्रा, सोते समय खांसी, सीने में जकडऩ व दर्द हो तो तुरंत इलाज लें।
इलाज
आयुर्वेद : इस तकलीफ में रोगी को ताजा भोजन खाना चाहिए। घर की रसोई में मौजूद हल्दी, सौंठ, अदरक, कालीमिर्च जैसे मसालों का प्रयोग करने से संक्रमण के असर को कम किया जा सकता है। इसके अलावा पिप्पली को दूध के साथ लेने से फेफड़ोंं की कोशिकाएं मजबूत होती हैं और संक्रमण फैलने का खतरा कम होता है।
होम्योपैथी : सीने या फेफड़ों के संक्रमण को ठीक करने के लिए रोगी को लक्षणों के अनुसार होम्यापैथी दवा देते हैं। इसमें मुख्य रूप से एकोनाइट, आर्सेेनिक अल्बम, ब्रायोनिया एल्बा, क्लीम्यूर, लोबेला आदि लेने से राहत मिलती है। योग और प्राणायाम फेफड़ों को मजबूत बनाते हैं।