लखनऊ। इंटरनेशनल एकेडमी ऑफ ओरल मेडिसिन एन्ड टॉक्सिकोलॉजी इंडिया चैप्टर और आईडीए लखनऊ ब्रांच की ओर से संयुक्त तत्वावधान में मर्करी टॉक्सिसिटी एवं अमलगम फ्री डेंटिस्ट्री पर सतत चिकित्सा कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम केजीएमयू के दंत विज्ञान संकाय के सीपी गोविला हाल में किया गया। कार्यक्रम में बताया गया कि मुख के अंदर केवल अमलगम (मिश्र धातु) या मर्करी का प्रयोग हानिकारक है। आईआईटी कानपुर और आईएओएमटी इंडिया चैप्टर के संयुक्त तत्वावधान में अध्ययन किया जा रहा है। यह जानकारी रविवार को आइएओएमटी इंडिया चैप्टर के सचिव डॉ. अखिलानंद चौरसिया ने दी है।
दांतों में धातुओं की फिलिंग भारत में जारी
इस अवसर पर चिकित्सा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मदनलाल ब्रह्म भट्ट और अधिष्ठाता दंत संकाय प्रो. शादाब मोहम्मद ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। कार्यक्रम में डॉक्टर शादाब मोहम्मद ने बताया कि अमेरिका, नार्वे और स्वीडन आदि देशों में दांतों में धातुओं की फिलिंग पर प्रतिबंध लगाया है लेकिन परंतु भारत में अभी भी इसका उपयोग जारी है।
अमलगम का इस्तेमाल किया जा रहा
कार्यक्रम में पूर्व अधिष्ठाता दंत विज्ञान संकाय केजीएमयू डॉ. असीम प्रकाश टिक्कू ने कहा कि अमलगम वर्तमान समय में इस्तेमाल किया जा रहा रहा है। इसका प्रमुख कारण है इसका टिकाऊ होना है। उपरोक्त कार्यक्रम में स्वागत संबोधन आईएओएमटी इंडिया चैप्टर के अध्यक्ष प्रोफेसर अनिल चंद्रा ने किया। आईएओएमटी के उपाध्यक्ष डॉ. रंजीत कुमार पाटिल, डॉ. रमेश भारती उपस्थित रहे।
इन्होंने भी रखे अपने विचार
मौलाना आजाद डेंटल कॉलेज, नई दिल्ली कंजरवेटिव डेंटिस्ट्री की आचार्य और विभागाध्यक्ष डॉ. संगीता तलवार ने मर्करी विषाक्तता और धातुओं से मुफ्त फीलिंग के बारे अपना विचार रखा। वहीं डॉ. तलवार ने बताया कि दांतों की फीलिंग में अमलगम का इस्तेमाल और लंबे समय तक इसे मुख के अंदर रखने की वजह से इससे लगातार मर्करी निकलती है और यह मर्करी मानव शरीर में विभिन्न प्रकार के तंत्रिका तंत्र की बीमारियां पैदा करती है। मर्करी का प्रयोग की वजह से बच्चों में ऑटिज्म जैसी बीमारियां भी हो रही है। डॉक्टर तलवार ने अमलगम रेस्टोरेशन की जगह कम्पोजिट्स और व्हाइट अमलगम का उपयोग किया जा सकता है और इसकी लागत भी उतनी ही आती है।