लखनऊ। न्यूरो एनेस्थीसिया और न्यूरो क्रिटिकल केअर अपडेट 2018 पर आयोजित सेमिनार का आयोजन रविवार को किया गया। सेमिनार में पीजीआई एनेस्थीसिया विभाग के डॉ. देवेंद्र गुप्ता ने कहा कि लकवा से पीडि़त व्यक्ति को समय पर ईलाज मिल जाए तो मरीज काफी हद तक ठीक हो सकता है। उन्होंने कहा कि लकवा के मरीज के लिए शुरू के तीन घंटे मायने रखते हैं। समय पर इलाज न मिलने से मरीज की जान तक जा सकती है यही नहीं कई मामलों में यह भी सामने आया है कि शरीर का प्रभावित अंग भी खराब हो सकता है।
यह भी कहा डॉक्टर ने
डॉ. देवेंद्र गुप्ता ने कहा कि लकवा की शिकायत होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। यह भी देखा जा रहा है कि लकवा के मरीज काफी देर में अस्पताल आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि ब्रेन स्ट्रोक और हैमरेज में खून की नली में थक्का जम जाता है। खून का बहाव प्रभावित होने लगता है। कई बार नली फट जाती है।
स्ट्रोक के 87 फीसदी मरीजों में खून की नली में ब्लॉकेज
सीएमई के आयोजक डॉ. देवेंद्र गुप्ता ने कहा कि स्ट्रोक के 87 फीसदी मरीजों में खून की नली में ब्लॉकेज (खून का थक्का जमने) की दिक्कत होती है। वहीं 13 फीसदी में हैमरेज होता है। इसमें सिर को खून पहुंचाने वाली नस फट जाती है और फिर सिर के ऑपरेशन की जरूरत होती है। खून ब्लॉकेज के मरीजों को आईसीयू में दवा से खून के थक्के को गलाया जाता है। ये प्रक्रिया तीन घंटे के भीतर करनी होती है। ज्यादा समय होने पर इंटरवेंशन रेडियोलॉजी यानी तार की मदद से थक्का निकाला जाता है।
सिर के ऑपरेशन में एनेस्थीसिया की अहम भूमिका
एनेस्थीसिया विभाग की डॉ. रुचि वर्मा ने कहा कि सिर के ऑपरेशन में एनेस्थीसिया की अहम भूमिका होती है। खासकर ट्यूमर के मामलों में खास सावधानी बरतनी चाहिए। ऐसे मामलों में मरीज के दिमाग को ध्यान में रखते हुए खास दवाएं और तकनीकी का इस्तेमाल किया जाता है ताकि मरीज को किसी प्रकार की दिक्कत न हो।