त्वचा का रंग काला पड़ने लगे, हाथ, पैर, उंगलियां, नाक, होंठ आदि मोटे होना भी है लक्षण

विशेषज्ञ डॉक्टर की सलाह जरूरी
लखनऊ। हाथ, पैर, उंगलियां, नाक, होंठ आदि मोटे होने लगे। त्वचा का रंग काला पड़ने लगे तो ये गंभीर बीमारी एक्रोमेगेली के लक्षण हैं। इसे कतई सामान्य बीमारी न समझें। इस बीमारी का कारण मस्तिष्क में स्थित पिटट्यूटरी ग्लैंड में ट्यूमर बनना है। जिससे ग्रोथ हार्मोन का स्राव अनियमित तरीके से होने लगता है। ग्रोथ हार्मोन अत्यधिक मात्रा में बनने की वजह से एक्रोमेगेली बीमारी होती है। शरीर के विकास में योगदान करने वाला ये हार्मोन असमान्य रूप से अधिक बनने लगता है तो बाहरी अंगों के आकार को भद्दा कर देता है और सही समय पर इलाज न मिलने से अंदरूनी अंगों दिल, आंतों और हड्डियों पर भी प्रभाव डालता है। इसी के कारण चेहरे सहित कई अन्य मोटे हो जाते हैं।
यदि किसी व्यक्ति जूते या चप्पल का नंबर बार-बार बदल रहा है तो इंडोक्राइन विशेषज्ञ को दिखाने की आवश्यकता है। जांच के बाद इस मरीज को पिटट्यूटरी ग्लैंड की सर्जरी की सलाह दी जाती है। जिससे ग्रोथ हार्मोन के असमान्य स्राव को रोका जा सके। सर्जरी के बाद मरीज को लगातार डॉक्टर के संपर्क में रहना पड़ता है। कुछ लोगों में दवाएं कुछ समय के लिए बंद हो सकती है लेकिन जांच के बाद दवाएं दोबारा शुरू करनी पड़ सकती है। सर्जरी के बाद मरीज पूरी तरह से सामान्य और लंबी जिंदगी जी सकता है। वंशानुगत (जेनेटिक) न होने के बावजूद परिवार के दूसरे सदस्यों में भी इस बीमारी के लक्षण मिल सकते हैं।
क्या है एक्रोमेगेली
संजय गांधी पीजीआई के इंडोक्राइनोलॉजिस्ट प्रो. सुशील गुप्ता के अनुसार ग्रोथ हारमोन पिटट्यूटरी ग्लैंड से निकलता है। ग्लैंड में ट्यूमर बन जाने के कारण ग्रोथ हारमोन का स्तर बढ़ जाता है। इससे अंगों असमान्य विकास होता है और मरीज असमान्य दिखने लगता है। 30 से 50 साल की उम्र में कभी भी यह बीमारी हो सकती है। इस बीमारी का पता लगाने के लिए खून में ग्रोथ हार्मोन की जांच की जाती है। इसके अलावा मस्तिष्क की एमआरआई, बोन मास डेंसिटी टेस्ट, ब्लड सुगर, हड्डी के जोड़ की बीच का एक्स-रे, कोलोनोस्कोपी और टू डी इको जांच भी करायी जाती है।
हृदय पर होता है असर
संजय गांधी पीजीआई के कोर्डियोलॉजिस्ट प्रो.सत्येंद्र तिवारी के अनुसार वृद्धावस्था जैसे लक्षण 30 साल की उम्र में दिखने लगे तो तुरंत इंडोक्राइन विशेषज्ञ से मिलने की जरूरत है। क्योंकि ये ‘ग्रोथ हार्मोन’के असमान्य तरीके से बढ़ने के कारण हो सकता है। जिसे एक्रोमेगेली नाम दिया गया है। इस बीमारी से पीड़ित 25 फीसदी लोगों में कोई हार्ट से संबंधित दिक्कतें नहीं मिलती हैं लेकिन अंदर ही अंदर इसका असर होता है। एक्रोमेगेली से पीड़ित बच्चों में दिल की बीमारी की आशंका दो- तीन गुना अधिक होती है। इसके अलावा हाई ब्लड प्रेशर, दिल की धड़कनें असमान्य होना, वाल्व में रिसाव, दिल को खून ले जाने वाले धमनियों की दीवारों का लचीलापन खत्म होना, दिल का बड़ा हो जाना आदि दिक्कतें होती हैं। इसलिए एक्रोमेगेली बीमारी के मरीजों में हार्ट की जांच बहुत जरूरी है।
कैसे पहचाने बीमारी
– हाथ, पैर का बड़ा होना (जूते का साइज जल्दी-जल्दी बदलना, चूड़ी या अंगूठी का साइज बढ़ना)
– नाक का मोटा होना, होठों का बड़ा होना, जुबान का बड़ा होना
– त्वचा का मोटा होना
– नाक में रुकावट
– जबड़ा बाहर की तरफ आना
– आवाज मोटी होना, शब्दों को साफ-साफ बोलने में दिक्कत
– अधिक खर्राटे आना
– हाथों में झनझनाहट और जोड़ों में दर्द
– जल्दी थकान
– पसीना अधिक आना
– आंखों की रोशनी में कमी
नाक के रास्ते निकाल दिया जाता है ट्यूमर
एसजीपीजीआई के न्यूरो सर्जन प्रो. संजय बिहारी बताते हैं एक्रोमेगेली बीमारी का कारण बनने वाले पिटट्यूटरी ग्लैंड के ट्यूमर को निकालना ही इसका स्थायी इलाज है। इस ट्यूमर को नाक के रास्ते इंडोस्कोपी से निकाल दिया जाता है। मात्र 45 मिनट से एक घंटे के अंदर ये ऑपरेशन पूरा हो जाता है। इसके बाद मरीज की देखभाल पूरी तरह से इंडोक्राइनोलॉजी विभाग करता है। । इसके बाद भी ग्रोथ हार्मोन का स्तर नहीं ठीक होता है तो एंटी ग्रोथ हार्मोन दवाएं दी जाती है। कई मरीजों में रेडियोथेरेपी भी देनी पड़ती है।
सर्जरी से फायदा
इलाज में महत्वपूर्ण भूमिका
नाक के रास्ते इंडोस्कोपिक सर्जरी
सर्जरी का चेहरे पर कोई निशान न आना
ट्यूमर सर्जरी से 100 फीसदी बाहर निकल जाना
इलाज के लिए यहां करें संपर्क-
संजय गांधी पीजीआई के इंडोक्राइन विभाग