लखनऊ। गंभीर मानसिक बीमारी सिजोफ्रेनिया से 17 साल का युवक और उसके घर वाले काफी परेशान थे। सही समय पर बीमारी की पहचान हो गई और उसका सफलतापूर्वक इलाज किया गया जिसके बाद अब वह बिल्कुल स्वस्थ्य है और बेहतर जिंदगी जी रहा है। युवक को यह बीमारी आनुवांशिक मिली थी। युवक करीब 1 साल से अधिक समय तक पीडि़त था।
युवक गुस्सैले व्यवहार, हेल्यूसिनेशन (विभिन्न प्रकार की घटनाओं के होने का भ्रम होना) और उसके सोचने समझने की क्षमता में बदलाव की शिकायत थी। जांच के बाद पता चला कि वह एक खुद में खोया रहने वाला लड़का है जिसे किसी बात की समझ नहीं है और किसी की बात का पालन भी नहीं कर सकता है।
जन्म से ही मानसिक स्वास्थ्य समस्या से ग्रस्त
मरीज राहुल (बदला हुआ नाम) की नाजुक हालत को देखकर उसके पिता और बहन ने उसे तुल्सी हेल्थकेयर के एमरजेंसी में भर्ती कराया। तुल्सी हेल्थकेयर, नई दिल्ली के निदेशक, गौरव गुप्ता ने बताया कि मरीज जन्म से ही मानसिक स्वास्थ्य समस्या से ग्रस्त था। उसकी दादी गंभीर बीमारी से पीडि़त थीं और 30 सालों तक उन्हें स्टेट हॉस्पिटल में रहना पड़ा था। मरीज की मां का भी इस तरह की परेशानियों का इलाज चल रहा था। हमारे साइकेट्रिक यूनिट में इलाज करवाने के लिए राहुल की काउंसिलिंग की गई।
35-40 प्रतिशत मामले अनुवांशिक
राहुल को अपने आसपास की चीजें समझ नहीं आती थीं। वह हर बात को नकारात्मक तरीके से महसूस करता था और उससे जो भी कहा जाता था उसे वो निगेटिव तरीके से समझता था। इनमें से एक लक्षण सिजोफ्रेनिया (लंबे समय की मानसिक बीमारी जो व्यक्ति के सोचने, महसूस करने और व्यवहार की क्षमता को प्रभावित करती है) बीमारी के साथ मेल खाता है। सिजोफ्रेनिया के लगभग 50 प्रतिशत मामले बिना निदान के ही रह जाते हैं और यदि हम गिने तो लगभग 35-40 प्रतिशत मामले अनुवांशिक होते हैं।
ऐसे पहचानें लक्षण
अगर बीमारी किशोरावस्था के दौरान विकसित होती है तो इसकी पहचान करना मुश्किल हो जाता है क्योंकि इस उम्र में व्यवहार में परिवर्तन होना आम बात है। जब एक व्यक्ति में सिजोफ्रेनिया सक्रिय होती है, तो लक्षणों में भ्रम, हेल्यूसिनेशन, सोच और एकाग्रता में परेशानी और प्रेरणा की कमी शामिल हो सकती है। सिजोफ्रेनिया से ग्रस्त मरीजों में आत्महत्या का प्रयास करने का मुख्य कारण अवसाद और चिंता है।
यह खास बात
डॉक्टर गौरव गुप्ता ने आगे बताया कि, एंटीसाइकोटिक्स को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है। पहली पीढ़ी, जिसे ‘टिपिकलÓ ड्रग्स के रूप में भी जाना जाता है और दूसरी पीढ़ी को ‘एटिपिकलÓ ड्रग्स के रूप में भी जाना जाता है। हाल के शोध से पता चलता है कि ये सभी दवाएं मुख्य रूप से डोपामाइन (दिमाग के सिग्नल जो व्यक्ति के सोचने, समझने और किसी काम को करने में मदद करता है) सिस्टम को प्रभावित करती हैं। एटिपिकल मेडिसिन नकारात्मक लक्षणों से राहत देती है, सोच-विचार की समस्या, काम करने की क्षमता, एक्ट्रापिरामिडल लक्षणों और टार्डीव डिस्केनेसिया को बेहतर करने में सहायक होती हैं। एटिपिकल मेडिसिन थेरेपी सिजोफ्रेनिया से पीडि़त लोगों के लिए बेहतर जीवन स्तर का परिणाम हो सकती है।