लखनऊ। किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के आॅफ नर्सिंग एवं जनरल सर्जरी विभाग के संयुक्त तत्वाधान में नर्सिंग के विद्यार्थियों के लिए (colostomy)” कोलेस्टॉमा” की देखभाल पर विशेष चिकित्सा कार्यक्रम का अयोजन किया गया।
यह बताया डॉक्टर पंकज ने
इस कार्यशाला में डाॅ. पंकज सिंह जनरल सर्जरी विभाग ने बताया कि कोलोन एवं पेट की सतह के बीच शल्य क्रिया द्वारा किये गये छेद (छिद्र) के निर्माण को कोलोस्टाॅमी कहते है। यह अस्थायी या स्थाई दोनो प्रकार का हो सकता है। जोकि स्टोमा का निर्माण ऐसे मरीजो मे किया जाता है जो स्थाई या अस्थाई रूप से मल को त्यागने में असमर्थ होते है। ऐसे मरीजो में स्टोमा के द्वारा ही मल आदि का उत्सर्जन होता है। कोलोन के, द्वारा को स्टमक से जोड़ने को स्टोमा कहते है, इससे मल बाहर निकल कर बैग में एकत्रित हो जाता हैं।
मरीजों को ऐसा नहीं करना चाहिए
क्लीनिकल इंस्ट्रक्टर नर्सिंग उर्वशी ने बताया कि कोलोस्टाॅमी में मरीज को जो बैग लगाया जाता है उसकी घर पर कैसे देखभाल की जाती है। उन्होने बताया कि स्टाॅमी के पास की त्वचा के कलर पर ध्यान देते रहना चाहिए की उसका रंग संक्रमण आदि की वजह से बदल तो नही रहा हैं या वहां से किसी प्रकार का कोई स्राव तो नही हो रहा है। स्टाॅमी वाले मरीजो को खाने में ऐसे वस्तुओ का सेवन नही करना चाहिए जिससे अम्लता या गैस की समस्या होती हो। खाने मे लो फाइबर डाइट लेनी चाहिए।
कोलोस्टाॅमी वाली जगह को ढककर सावधानी बरते हुए रोज नहा सकते है
कई बार यह देखने को मिलता है कि जिस मरीज की कोलोस्टाॅमी की जाती है वो केवल तब नहाता जब वो बैग बदलता है ऐसे मरीज की शरीर से दुर्गंध आने लगती है इसलिए ऐसे व्यक्तियों को भी कोलोस्टाॅमी वाली जगह को ढककर सावधानी बरते हुए रोज नहा सकते है। ऐसे मरीजों एवं उनके परिवार वालों को कोलोस्टॉमी की स्वीकार्यता के लिए काउंसलिंग की जाती है। डाॅ. सूचना राय भौमिक ने बताया कि कोलोस्टाॅमी बैग को 3 से 7 दिनो के अंदर या बैग जब भर जाए तो उसे बदल देना चाहिए। ऐसे मरीजो और उनके परीवारीजनों को हैण्ड हाईजिन का भी भरपूर ध्यान रखना चाहिए ताकि मरीज को को किसी प्रकार का संक्रमण ना हो।