लखनऊ| अर्ली चाइल्डहुड केयर एंड एजुकेशन (ई.सी.सी.ई०) प्रोग्राम के तहत आंगनवाडी केन्द्रों के वातावरण में बदलाव किया जा रहा है | यहाँ आने वाले बच्चे को दीवारों पर टंगे बैग , फल-फूलों को पहचानने , महक से सब्जी को जानने जैसी कई चीज़े सिखाई जा रही हैं | बच्चों का दिमागी विकास ही नहीं, उनको शारीरिक रूप से मज़बूत बनाने के लिए खेल-कूद का भी इंतजाम है |
आंगनवाडी कायाकल्प करने की योजना के तहत सबसे पहले डीपीओ (जिला कार्यक्रम अधिकारी) और सीडीपीओ (बाल विकास कार्यक्रम अधिकारी ) को योजना का पूरा उद्येश्य समझाया गया | उन्हें बताया गया कि किस तरह पढाई के तरीके और आंगनवाडी केन्द्रों को आकर्षक बनाकर बच्चों को यहाँ लाया जा सकता है|
सरैया बाज़ार की आँगनवाड़ी कार्यकर्ता श्रीमती ने बताया कि यूनिसेफ व सेंटर फॉरलर्निंग रिसोर्स ने उनके वर्तमान प्रशिक्षण की नींव तैयार कर दी है | उन्होंने बताया कि सीडीपीओ के साथ मिलकर सुपरवाइजरों और आंगनवाडी केंद्र संचालिकाओं को इसकी ट्रेंनिंग दी गयी | इसके बाद आंगनवाड़ी केन्द्रों पर कुछ परिवर्तन किये गये , जैसे- दीवारों पर पेंटिंग्स बनाई गयी, प्लान कार्नर की व्यवस्था की गयी, हर बच्चे का उसके नाम वाला एक बैग बनाया गया जिसमे उनका बनाया हुआ सामान रखा जाता है जो कि बच्चे के पालकों से मिलते समय उन्हें दिखाया जाता हैऔर मिटटी के खिलोने बनाकर बच्चों को अलग तरीके के पढाई करवाने के तरीके बताये गये| इसमें आंगनवाड़ी सेंटर कैसा बनाना चाहिए| साथ ही बच्चों को सामजिक व्यवहार जैसे नमस्ते करना , वेलकम करना,इत्यादि के बारे में बताना, शामिल है | इनके प्रशिक्षण ने केन्द्रों को आकर्षक बना दिया है | जब से केंद्र को आकर्षित बनाया गया है और बच्चों के लिए ई०सी०सी०ई० की विभिन गतिविधियाँ करायी जाने लगीं हैं;- जैसे छोटे बड़े की पहचान, रंगों की पहचान इत्यादि तब से बच्चे देर तक रुकते हैं , उन्हें बुलाने के लिए बहुत मशक्कत नहीं करनी पड़ती है| वे स्वयं आते है और केंद्र पर रुकते हैं |
लाभार्थी सीमा ने बताती हैं कि अब उसकी लड़की तो बिना बताये ही केंद्र पर चली जाती है और केंद्र पर जो खिलौने वगैरह हैं उनसे खेलती रहती है | वहां आंगनवाडी दीदी जो जो सिखाती हैं उनके साथ वोह दोहराती है| केंद्र से वापिस घर आने के लिए वोह जल्दी तैयार नहीं होती है |
भारत सरकार ने 4 साल पहले आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए “पहल” नामक पुस्तिका लांच की थी | जिसमें बच्चों को किस प्रकार से शाळा पूर्व शिक्षा देनी है | इसके बारे में विस्तार से बताया गया था | लेकिन इस पुस्तक को लेकर व शाला पूर्व शिक्षा बच्चों को किस प्रकार से देनी है, इसके बारे में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं दिया गया था |
लखनऊ में इसी पहल पुस्तिका को आधार बनाकर विभाग द्वारा एक प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया | जिसमें विभाग के कर्मचारियों को ही डिस्ट्रिक्ट लेवल मास्टर ट्रेनर्स बनाया गया और जिला कार्यक्रम अधिकारी कार्यालय में 20 डिस्ट्रिक्ट लेवल मास्टर ट्रेनर्स को 5 दिवसीय सघन प्रशिक्षण दिया गया | ये मास्टर ट्रेनर्स अलग अलग विकास खण्डों में अपने क्षेत्रों में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देंगे | इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाषा का विकास, मोटर डेवलपमेंट, शारीरिक विकास व मोटर लर्निंग डेवलपमेंट से सम्बंधित टीचिंग लर्निंग मटेरियल (TLM) बनवाया गया जिसके माध्यम से बच्चों के साथ में उपरोक्त विकास के लिए बच्चों से गतिविधियाँ करायी जाएंगी | इसी क्रम में पूरे लखनऊ में पहले बैच का आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का 6 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया जो कि 4 अप्रैल को संपन्न हुआ | जिसमें 40 आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने प्रतिभाग किया है |
पहल पुस्तिका में साल के हिसाब से थीम दिए गए हैं 12 महीने में 2 महीने रिविसन के लिए प्रस्तावित हैं | बाकि 10 महीनों के लिए थीम निर्धारित किये गए हैं जैसे:- हमारे मौसम(मौसमों के प्रकार), जानवर ( जानवरों के प्रकार ), हमारे परिवार, हमारे त्यौहार इत्यादि | इन्हीं थीम को आधार बनाते हुए आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने टीचिंग लर्निंग मटेरियल (TLM) बनाया है जिसका उपयोग वे अपने अपने केन्द्रों पर बच्चों को बताने के लिए करेंगी |
बच्चों के जीवन के पहले 6 साल सबसे अधिक महत्वपूर्ण होते हैं क्यूंकि इस आयु में उनका मानसिक विकास बहुत तीव्र गति से होता है | इस उम्र में न सिर्फ स्वास्थय, पोषण और देखभाल की गुणवत्ता जरूरी है बल्कि साथ में दिए जाने वाले वातावरण का भी विशेष महत्व होता है | जीवन के पहले तीन वर्ष भाषा व शब्दावलीके विकास में सबसे महत्वपूर्ण होते हैं |
भारत सरकार ने उपरोक्त क्षेत्रों को ध्यान में रखते हुए 1975 में समेकित बाल विकास योजना प्रारम्भ की | यह दुनिया का सबसे बड़ा कार्यक्रम है | जिसमें लाभार्थी 0-6 वर्ष तक के बच्चे, गर्भवती व धात्री महिलायें और 11-18 वर्ष की किशोरी लड़कियाँ सम्मिलित हैं |
इस योजना के मुख्य उद्देश्य
0-6 वर्ष के बच्चों के पोषण व स्वास्थय की स्थिति में सुधार करना |
बच्चे के उचित शारीरिक, मानसिक व सामाजिक विकास की नींव रखना |
मृत्यु दर, रुग्णता, कुपोषण व स्कूल छोड़ने की घटनाओं को कम करना |
बाल विकास को बढ़ावा देने के लिए प्रभावी नीति का समन्वय और विभिन्न विभागों के बीच क्रियान्वयन |
उचित पोषण और स्वास्थय शिक्षा के माध्यम से बच्चे के सामान्य स्वास्थय और पोषण की जरूरतों के लिए माँ की क्षमता को बढ़ाने हेतु सेवाएं |
उपरोक्त सेवाएं आंगनवाड़ी कार्यकर्ता द्वारा आंगनवाड़ी केन्द्रों के माध्यम से प्रदान की जाती हैं | इन सेवाओं में स्वास्थय, पोषण के साथ साथ शाला पूर्व शिक्षा को शामिल करने का उद्देश्य है कि 6 वर्ष तक के बच्चों में भाषा का विकास, संज्ञानात्मक व् मानसिक विकास करना, बच्चों को स्कूल जाने के लिए तैयार करना स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या में कमी लाना |