लखनऊ। प्राचीन काल में औषधियां प्राय: वनस्पतियों तथा कभी-कभी जंतुओं के अंगों द्वारा विकसित की जाती थी, परन्तु अब विशेष औषधियों को सृजित किया जा रहा है। इसलिए प्रोस्टेट ग्रन्थि के बढऩे और अमाशय के घाव जैसी बीमारियों का इलाज अब दवाओं द्वारा संभव है। पहले इसका एकमात्र उपचार शल्यक्रिया ही थी। यह बातें पीजीआई के निदेशक डा. राकेश कपूर ने केजीएमयू में कही।
सामान्य कोशिकाओं पर दुष्प्रभाव नहीं
डॉ. राकेश कपूर ने गुर्दे तथा मूत्र तंत्र से संबंधित बीमारियों के इलाज में आधुनिक प्रगति एवं शोध व्याख्यान दिया। उन्होंने अपने व्याख्यान में बताया किस प्रकार से नई औषधियों का विकास हुआ है और इसको उन्होंने मानव विकास के तुलानात्मक बताया। उन्होंने कहा कि कर्क रोग के उपचार के लिए अब ऐसी औषधियां विकसित की जा रही हैं, जो केवल कर्क रोग की कोशिका तंत्र को ही समाप्त करती है और रोगी की सामान्य कोशिकाओं पर दुष्प्रभाव नहीं डालती।
विद्यार्थियों को किया पुरस्कृत
इस अवसर पर फार्माकोजॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. एके सक्सेना ने बताया कि फार्माकोलॉजी विभाग पहले मेटेरिया मेडिका इकाई की तरह डिपार्टमेंट ऑफ मेडिसिन के अंतगर्त आता था। उन्होंने बताया कि 1949 में प्रोफेसर एमएल गुजराल द्वारा फार्माकोलॉजी विभाग की स्थापना की गई थी और प्रो. गुजराल ही इस विभाग के प्रथम विभागाध्यक्ष बने, इसके साथ ही 1962 में प्रो. केपी भार्गव ने इस विभाग को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने में प्रमुख भूमिका निभाई। इस दौरान विभाग द्वारा एमडी, एमबीबीएस एवं बीडीएस के फार्माकोलॉजी परीक्षा में शीर्ष अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को पुरस्कृत किया गया।
प्रतियोगिता का आयोजन, दिया पुरस्कार
विभाग द्वारा क्लीनिकल फार्माकोलॉजी प्रोजेक्ट एवं पोस्टर प्रेजेंटेशन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसमें पूर्ण पारदर्शिता बरती गई। इस अवसर पर क्लीनिकल फार्माकोलॉजी प्रोजेक्ट तथा प्रोस्टर प्रेजेंटेशन में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान प्राप्त विद्यार्थियों को पुरस्कृत किया गया। कार्यक्रम में मुख्य रूप से डॉ. विनीता दास, डीन, फैकेल्टी ऑफ मेडिकल साइंसेस, डॉ. मधुमति गोयल, डीन, फैकेल्टी ऑफ नर्सिंग, आशुतोष कुमार, विभागाध्यक्ष पैथोलॉजी विभाग तथा अन्य चिकित्सक एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।