लखनऊ। देश में मानसिक बीमारी के मरीजों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। इससे निपटने के लिए मनोचिकित्सकों को अपने संसाधन एवं क्षमताओं को बढ़ाना होगा। मनोरोग को चिकित्सा शिक्षा में अधोस्नातक पाठ्यक्रम में एक अनिवार्य विषय के रूप में शामिल किया जाना चाहिए। यह बातें किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.एमएलबी भट्ट ने कही। वह इंडियन मनोरोग सोसाइटी के 71वें राष्ट्रीय वार्षिक सम्मेलन के शुभारंभ के बाद कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर वरिष्ठ मनोचिकित्सक ने दीप प्रज्जवलित कर किया। इस अवसर पर सीएमई के चेयरपर्सन डॉ. टोफान ने समारोह में उपस्थित अतिथिगण को कार्यक्रम के बारे में विस्तृत जानकारी दी।
जल्द इलाज विकलांगता से बचाता है
डॉ. अजीत भिड़े ने बताया कि यह बीमारी एक गंभीर प्रकार का मानसिक रोग है और इस बीमारी से पीडि़त लोगों की संख्या में दिन प्रतिदिन बढ़ोतरी हो रही है। उन्होंने बताया कि इस बीमारी के जल्द से जल्द इलाज भविष्य में विकलांगता से बचाता है। इस अवसर पर सुप्रसिद्ध मनोविश्लेषक एवं लेखिका डॉ. सुधीर कक्कड़ ने मनोचिकित्सकों के लिए मनोविश्लेषण की समकालीन प्रासंगिकता पर चर्चा करते हुए बताया कि ख्याति प्राप्त सामाजिक कार्यकर्ता एवं मैगसेसे पुरस्कार विजेता मनोचिकित्सक डॉ. भरत वाटवानी ने देश में बेसहारा और बेघर व्यक्तियों के मानसिक स्वास्थ्य और पुनर्वास का मुद्दा उठाया। यह स्वास्थ्य सेवाओं के नजरिए से अपेक्षाकृत उपेक्षित तबका है और उन्होंने इस पर तत्काल ध्यान दिए जाने पर जोर दिया।
ये थे मौजूद
उन्होंने अमेरिका के जॉन हॉपकिंस विश्वविद्यालय की सुप्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉ. गीता जयराम का जिक्र करते हुए कहा कि उनका मानना है कि मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल के क्षेत्र में सामुदायिक हस्तक्षेप आवश्यक है। उक्त कार्यक्रम में निमहांस, बंगलुरू के डॉ. चितरंजन अंडराडे, कोलकाता के डॉ. देबाशीष सान्याल, एम्स के डॉ. कौशिक सिन्हा देब ने भी अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर केजीएमयू के मानसिक रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. पीकेदलाल, केजीएमयू के मानसिक रोग विभाग के डॉ. आदर्श त्रिपाठी, डॉ. सुजीत कुमार और डॉ. ईशा शर्मा पर चर्चा की। इस अवसर पर मनोचिकित्सक डॉ. मलय दीपक दवे ने क्वीजमास्टर प्रश्नोउत्तरी प्रतियोगिता का आयोजन किया।