लखनऊ। भारत में बांझपन एक गंभीर समस्या के रूप में सामने आ रहा है। इस समस्या में अक्सर महिलाओं को ही जिम्मेदार माना जाता है। ऐसा नहीं है, बांझपन में 40 फीसदी महिला, 40 फीसदी पुरुषों की भागीदारी होती है। वहीं 10 फीसदी मामलों में दोनों में ही कमी देखी जाती है और 10 फीसदी मामलों में कारणों का पता नहीं चल पाता है। लखनऊ में बांझपन के सभी मामलों में पुरुष बांझपन का हिस्सा 40-45 फीसदी है।
270 से 300 लाख जोड़े बांझपन से ग्रस्त
उक्त बातें नोवा आईवीआई फर्टिलिटी की प्रजनन सलाहकार डॉ. आंचल गर्ग ने कही। वह सप्रू मार्ग स्थित एक होटल में कार्यक्रम को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने बताया कि दो दशकों में पुरुषों के प्रजनन स्वास्थ्य में कई कारणों की वजह से कमी आई है। प्रजनन आयु में बांझपन भारत में करीब 10 से 12 फीसदी जोड़ों का प्रभावित करता है। उन्होंने कहा कि भारत में करीब 270 से 300 लाख जोड़े बांझपन से ग्रस्त हैं। ऐसे लोगों में केवल एक फीसदी ही चिकित्सा उपचार ले सकते हैं।
इसका है फायदा
उन्होंने कहा कि नोवा आईवीआई में दो हजार से अधिक घरों में किलकारियां गूंजी हैं। आधुनिक तकनीक की खूबी यह है कि इससे प्रजनन विशेषज्ञों को आईसीएसआई की प्रक्रिया के लिए सबसे अच्छा और स्वस्थ शुक्राणु चुनने की आजादी मिलती है, जिससे गर्भावस्था की संभावना बढ़ जाती है। एमएसीएस (मैगनेटिक एक्टिवेटेड सेल सार्टिंग) एक ऐसी उन्नत एआरटी तकनीक है जो आईवीएफ या आईसीएसआई की सफलता दर को आगे बढ़ाती है।
इन्होंने कही अपनी बात
नीरज (40) और माला (27) (बदले हुए नाम) की शादी को 6 वर्ष बीत गए थे लेकिन उनके कोई बच्चा नहीं था। जोड़े की परीक्षा में, माला की रिपोर्ट सामान्य थी, हालांकि, नीरज के शुक्राणु मानक खराब पाए गए। उन्हें ओलिगोजोस्पर्मिया (शुक्राणुओं की संख्या में कमी), एस्टेनोजोस्पोर्मिया (शुक्राणुओं की कम गतिशीलता) और रेराटोजोस्पर्मिया (असामान्य शुक्राणु मॉर्फोलॉजी) का निदान किया गया था, यही वजह थी कि यह जोड़े को अभी तक संतान हासिल नहीं हो पाई थी। पेशे से बिजनेसमैन नीरज का किसी भी बड़ी बीमारी, धूम्रपान या शराब के सेवन का कोई इतिहास नहीं था, लेकिन उन्हें पान-मसाला खाने की आदत थी।
पुरुष बांझपन के कारण
चिकित्सा, पर्यावरण और जीवनशैली कारकों के कारण पुरुषों में उत्पादित होने वाले शक्राणुओं की गुणवत्ता और मात्रा को प्रभावित करता है। यौन समस्याओं और हार्मोनल असंतुलन के अलावा, कैंसर की दवाएं, विकिरण या कीमोथेरेपी, श्रोणि सर्जरी और यौन संचारित रोग (एसटीडी) जैसे संक्रमण शुक्राणु उत्पादन या शुक्राणु स्वास्थ्य में हस्तक्षेप कर सकते हैं, जिससे पुरुषों में बांझपन के मामलों में वृद्धि हो सकती है। अधिक गर्मी, विषाक्त पदार्थों और रसायनों जैसे कुछ पर्यावरणीय कारकों के अधिक संपर्क में रहने ने भी पुरुषों में शुक्राणुओं के उत्पादन को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। औद्योगिक रसायनों, भारी धातुओं जैसे लीड, लंबे समय तक बैठकर काम करने से अंडकोषों तक अधिक गर्मी पहुंचना, लंबे समय तक लैपटॉप को गोद में रखकर काम करना। मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए ली जाने वाली एनाबॉलिक स्टेरॉयड जैसी दवाओं का अवैध उपयोग, कोकीन या मारिजुआना का उपयोग, शराब, तम्बाकू या अत्याधिक धूम्रपान। तनाव और मोटापा भी पुरुषों में प्रजनन क्षमता को कम करता है।
महिलाओं में बांझपन के कारण
ओवरी में अण्डे का कम होना या फिर जल्दी खर्च हो जाना। ट्यूब का ब्लॉक होना इससे अण्डे और शुक्राणु मिन नहीं पाते है। बच्चेदानी में किसी गांठ का होने से बांझपन की शिकायत होती है। इसके अलावा महिलाओं द्वारा स्मोकिंग या शराब का सेवन भी बांझपन कर कारण बनता है।