नई दिल्ली। यकृत में होने वाली सिरोसिस की बीमारी कैंसर के बाद सबसे भंयकर है। इसका सिर्फ एक इलाज है और वह है लिवर प्रत्यारोपण। एक आंकड़े की मानें तो विकासशील देशों में करीब एक करोड़ लोग इस बीमारी की गिरफ्त में हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट के अनुसार लिवर सिरोसिस के 20 से 50 फीसदी मामले शराब के अधिक सेवन से देखने को मिले हैं। समय रहते इलाज नहीं होने पर लिवर काम करना बंद कर देता है और यह स्थिति जानलेवा होती है।
वायरल इंफेक्शन
पाकिस्तान के लाहौर स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेंस (यूएचएस) के कुलपति प्रोफेसर डॉ. जावेद अकरम ने रविवार को बताया कि वायरल इंफेक्शन हेपेटाइटिस सी और बी लिवर सिरोसिस के मुख्य वजहों में से एक हैं। यह संक्रमण पााकिस्तान, भारत एवं बंगलादेश समेत विकासशील देशों में बहुत आम हो गया है।
यह संक्रमण अस्पतालों के कुछ मामूली उपकरणों की उचित रख-रखाव एवं सफाई की कमी और प्रयोग में लायी गयी सीरिंज आदि के दोबारा उपयोग करने से होता है। अगर कोई स्वस्थ्य व्यक्ति इस वायरल से संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आता है तो वह भी इससे संक्रमित हो सकता है। इन देशों में करीब एक करोड़ लोग लिवर सिरोसिस से ग्रस्त हैं और लगभग चार करोड़ हेपेटाइटिस सी और बी से संक्रमित हैं।
शराब का सेवन भी है कारण
प्रोफेसर अकरम ने कहा कि शराब भी इस बीमारी के मुख्य कारणों में से एक है। लंबे समय से शराब के अधिक सेवन से लिवर में सूजन पैदा हो जाती है जो इस बीमारी का कारण बन सकती है। लेकिन जो व्यक्ति शराब में हाथ तक नहीं लगाता एवह भी इस बीमारी की चपेट में आ सकता है। इसे ‘नैश सिरोसिसÓ यानी नॉन एल्कोहलिक सिएटो हेपेटाइटिस से जाना जाता है।
लिवर प्रत्यारोपण ही अंतिम उपचार
उन्होंने कहा कि सिरोसिस का अंतिम उपचार लिवर प्रत्यारोपण है। इसकी सफलता का दर करीब 75 प्रतिशत है जिसे अच्छा माना जाता है। परिवार के किसी भी सदस्य के जिगर का छोटा सा हिस्सा लेकर मरीज के लिवर में प्रत्यारोपित किया जाता है। डोनर को किसी तरह का कोई खतरा लगभग नहीं के बराबर है।
यह होता है
लिवर सिरोसिस में पेट में एक द्रव्य बन जाता है और यह स्थिति रक्त और द्रव्य में प्रोटीन और एल्बुमिन का स्तर बने रहने की वजह से निर्मित होती है। लिवर के बढऩे से पेट मोटा हो जाता है और इसमें दर्द भी शुरू हो जाता है।
जानें लक्षण
सिरोसिस के लक्षण तीन स्तर पर सामने आते हैं। शुरूआती स्तर में व्यक्ति को अनावश्यक थकावट महसूस होती है। साथ हीए उसका वजन भी बेवजह काम कम होने लगता । इसके अलावा पाचन संबंधी समस्याएं सामने आती हैं। इस बीमारी के दूसरे चरण में व्यक्ति को अचानक चक्कर आने लगता है और उल्टियां होने लगती हैं। उसे भूख नहीं लगती है और बुखार जैसे लक्षण होते हैं। तीसरी एवं अंतिम अवस्था में मरीज को उल्टियों के साथ खून आता है और वह बेहोश हो जाता है। इस बीमारी में दवाओं का कोई असर नहीं होता। प्रत्यारोपण ही एकमात्र उपचार है।