लखनऊ। केजीएमयू के डॉक्टरों की एक टीम ने फेफड़ों के कैंसर को लेकर एक बड़ा काम किया है। अब फेफड़ों में हुए कैंसर की जांच आसान हो गई है। डॉक्टरों की टीम ने मआई आरएनए (माइक्रो राइबो न्यूक्लिक एसिड) की पहचान की है। यह लंग कैंसर की सेल्स में मिले होते हैं। पहले फेफड़ों में होने वाले कैंसर की जांच के लिए बड़ा टुकड़ा निकालना पड़ता था लेकिन अब एक निडिल की नोंक के बराबर का टुकड़ा लेकर कैंसर के प्रकार और उसके स्टेज का पता लगाया जा सकता है। फेफड़े के कैंसर वाले मरीजों के लिए यह बेहद फायदेमंद हैं। इससे एक ही बार में सटीक जांच हो सकेगी। पुरानी विधि में एक बार में सटीक जांच होने की संभावनाएं काफी कम होती थीं।
ये है वो टीम
केजीएमयू के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन के विभागाध्यक्ष डॉ. वेद प्रकाश, सेंटर फार एडवांस रिसर्च के डॉ. सत्येंद्र कुमार सिंह और डॉ. अंजना सिंह की टीम ने मॉलीक्यूलर डायग्नोसिस के जरिए सीटी गाइडेड बायोप्सी के द्वारा कैंसर सेल्स की खोज की है। डॉ. सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया कि इस शोध के दौरान 75 फीसदी मरीजों में एडिनो कार्सिनोमा मिला है जबकि अभी तक स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा ज्यादा पाया जाता था। यह तंबाकू और धूम्रपान की वजह से होता है।
युवा भी हैं चपेट में
डॉ. वेद ने बताया कि जो कैंसर पहले 50 साल की उम्र के बाद होते थे वे अब 27 साल के युवाओं को भी होने लगे हैं। कुछ ऐसे भी युवा हैं जो किसी भी प्रकार का नशा नहीं करते हैं। ऐसे तीन मामले अभी ताजा आए हैं जो 27, 29 और 32 साल के युवा हैं। ये किसी प्रकार का नशा भी नहीं करते हैं और पारिवारिक हिस्ट्री भी नहीं है। डॉ. वेद ने कहा कि इसके कारणों की जांच की जा रही है।
हवा, पानी भी गड़बड़
डॉ. वेद ने कहा कि आज के समय में सिगरेट, तम्बाकू तो कैंसर के लिए जिम्मेदार हैं ही लेकिन अब वायु प्रदूषण, पानी, खाने-पीने की वस्तुओं में मिलावट और लाइफसटाइल में बदलाव भी लंग कैंसर के कारण हो सकते हैं।
ऐसे नजर आते हैं लक्षण
डॉ. वेद के अनुसार लंग कैंसर में खांसी आना, खांसी के साथ खून का आना, शरीर में कमजोरी, सीने में दर्द, आवाज का बदलना आदि लक्षण हैं।
डॉ. वेद प्रकाश ने बताया कि बड़ा टुकड़ा निकालने पर यदि सही जानकारी नहीं मिली तो दोबारा ऑपरेशन कर टुकड़ा निकालना पड़ता था। इसमें मरीज को भी काफी दिक्कतें उठानी पड़ती थीं। यह जांच हिस्ट्रोपैथोलॉजी विधि से होती थी। उन्होंने बताया कि अब इसके साथ मॉलीक्यूलर जांच के जरिए सटीक बताया जा सकता है कि कैंसर है या नहीं। उन्होंने बताया कि तीन एमआई आरएनए ऐसे हैं जो फेफड़े के कैंसर की कोशिकाओं में पाए गए। इससे इस बात की पुष्टि होगी कि जिन मरीजों यह हैं, उनकी बीमारी शुरूआती चरण में है। वहीं दो आरएनए ऐसे हैं जिनमें से एक सिर्फ स्क्वैमस और दूसरा सिर्फ एडिनो कार्सिनोमा में ही पाया जा सकता है। इससे कैंसर के प्रकार का पता चलेगा। उन्होंने बताया कि इसकी पुष्टि होने के बाद मरीज को सही दवा दी जा सकेगी।