लखनऊ। एसजीपीजीआई ने एक नई तकनीक की खोज कर दी है। इस नई तकनीक ने बेजान अंगों में जान डाल दी है। विभागाध्यक्ष डॉ. सुनील प्रधान बताते हैं कि ब्रेन स्ट्रोक के बाद मरीजों की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। जिसकी वजह से जोड़ों में बहुत दर्द होता है। मरीज चल फिर नहीं पाते हैं। वह दूसरे पर आश्रित हो जाते हैं। 50 से अधिक की उम्र के लोग अपने दैनिक काम भी नहीं कर पाते हैं।
न्यूरोलॉजी विभाग ने की खोज
इस नई तकनीक के आने के बाद ब्रेन स्ट्रोक के बाद बेजान हो चुके अंग अब फिर से काम करेंगे। कैस्प थेरेपी से यह मुमकिन हुआ है। पीजीआई न्यूरोलॉजी विभाग ने इलाज की यह तकनीक खोजी है। इसमें मरीज को खास तरह की कसरत कराई जाती है। पीजीआई न्यूरोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. सुनील प्रधान ने ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों के हाथ-पैर में जान डालने का नई तकनीक विकसित की है। इस तरीके को करेक्टेड एसिस्सटेड सिंक्रोनाइज्ड पियारोडिक (कैस्प) थेरेपी नाम दिया है। स्ट्रोक वाले 61 गंभीर मरीजों पर इसका प्रयोग किया है। 31 मरीजों के हाथ-पैर का व्यायाम कराया है। बाकी 30 मरीजों को सामान्य फिजियोथेरेपी दी गई। तीन से छह माह लगातार थेरेपी देने के साथ ही हाथ-पैर और मांसपेशियों की मजबूती का आंकलन किया।
वृद्धा को नया जीवन
गोंडा निवासी जामवंती देवी (86) के तीन पहले महीने ब्रेन स्ट्रोक पड़ा। उनके शरीर के बाएं हिस्से में कमजोरी आ गई। हाथ-और पैर ठीक से काम नहीं कर रहे थे। काफी इलाज के बाद फायदा न होने पर बेटा मां को पीजीआई लेकर पहुंचा। यहां डॉ. प्रधान ने कैस्प थेरेपी के जरिये कसरत कराई। हल्की-हल्की मु_ी बंद होने लगी। हाथ थोड़ा-थोडा आगे पीछे होने लगा। अब वह चलने-फिरने लगी हैं। रोजमर्रा के काम भी कर पा रही हैं।