लखनऊ। वायु प्रदूषण लोगों के स्वास्थ्य के साथ ही उनके वैवाहिक जीवन को भी प्रभावित कर रहा है। इसके कारण कई ऐसे दंपति हैं, जो काफी कोशिशों के बाद भी बच्चे को जन्म देने में नाकाम हो रहे हैं। लखनऊ स्थित इंदिरा आईवीएफ हास्पिटल में आईवीएफ विशेषज्ञ डा. राधिका बाजपई का कहना है कि कई लोगों के वीर्य में तो शुक्राणुओं की संख्या इतनी कम पाई गई है कि गर्भधारण के लिए जरूरी न्यूनतम मात्रा जितने शुक्राणु भी उनमें नहीं पाए गए।
गर्भपात का खतरा
स्पर्म काउंट में इतनी ज्यादा कमी आने की वजह से गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है और शुक्राणुओं के एक जगह इकट्टा हो जाने की वजह से वे फेलोपाइन ट्यूब में भी सही तरीके से नहीं जा पाते हैं, जिसके चलते कई बार कोशिश करने के बाद भी गर्भधारण नहीं हो पाता है।
इंफर्टिलिटी के शिकार
कानपुर में कई ऐसे कपल्स हैं, जो काफी कोशिशों के बाद भी बच्चा पैदा करने में नाकाम हो रहे हैं। एक अध्ययन के अनुसार 100 में से 3 लोग जहरीली हवा के कारण लखनऊ में इंफर्टिलिटी के शिकार है। ऐसे कपल्स की जांच में यह पाया गया है कि वातावरण में मौजूद प्रदूषण पुरुषों की फर्टिलिटी पर गहरा असर डाल रहा है। महिलाओं में प्रेग्नेंसी के दौरान ही गर्भपात हो जाने के पीछे भी यह एक प्रमुख कारण बनकर सामने आ रहा है।
संभोग की इच्छा में कमी
डा. राधिका बाजपई ने बताया कि पुरुषों में फर्टिलिटी कम होती जा रही है, इसका सबसे पहला और प्रमुख संकेत संभोग की इच्छा में कमी के रूप में सामने आता है। स्पर्म सेल्स के खाली रह जाने और उनका अधोपतन होने के पीछे जो मैकेनिज्म मुख्य कारण के रूप में सामने आता है, उसे एंडोक्राइन डिसरप्टर एक्टिविटी कहा जाता हैए जो एक तरह से हारमोन्स का असंतुलन है।
लंबे समय तक जब हम ऐसे जहरीले कणों से युक्त हवा में सांस लेते हैं, तो उसकी वजह से संभोग की इच्छा पैदा करने के लिए जरूरी टेस्टोस्टेरॉन और स्पर्म सेल के प्रोडक्शन में कमी आने लगती है।
उर्वर क्षमता हो रही है प्रभावित
डॉ. राधिका बाजपई के अनुसार स्पर्म सेल की लाइफ साइकिल 72 दिनों की होती है और स्पर्म पर प्रदूषण का घातक प्रभाव लगातार 90 दिनों तक दूषित वातावरण में रहने के बाद नजर आने लगता है। सल्फर डाइऑक्साइड की मात्रा में हर बार जब भी 10 माइक्रोग्राम की बढ़ोतरी होती हैए तो उससे स्पर्म कॉन्संट्रेशन में 8 प्रतिशत तक की कमी आ जाती हैए जबकि स्पर्म काउंट भी 12 प्रतिशत तक कम हो जाता है और उनकी गतिशीलता या मॉर्टेलिटी भी 14 प्रतिशत तक कम हो जाती है।
स्पर्म के आकार और गतिशीलता पर असर पडऩे की वजह से पुरुषों में ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस अचानक बढ़ जाता है और डीएनए भी डैमेज होने लगता हैए जिससे उनकी फर्टिलिटी पर काफी बुरा असर पड़ता है और उनकी उर्वर क्षमता प्रभावित होती है।
लाइफस्टाइल में बदलाव से पड़ेगा असर
डा. राधिका बाजपई का कहना है कि अपनी लाइफ स्टाइल में कुछ बदलाव लाकर और अपनी डायट पर कंट्रोल करके इसके असर को कम जरूर किया जा सकता है और स्पर्म काउंट पर पडऩे वाले इसके असर से भी बचा जा सकता है। शरीर में स्वस्थ शुक्राणुओं को विकसित करने के लिए उनकी गुणवत्ता, मात्रा, गतिशीलता और एकाग्रता को बचाए और बनाए रखना बेहद जरूरी है।
उपाय
एंटीऑक्सिडेंट का सेवन ज्यादा करें। उनमें विटामिन्सए मिनरल्स और रिच न्यूट्रिएंट्स का सही मिश्रण होता है और जो स्पर्म को हेल्दी बनाए रखने और उनकी क्वॉलिटी को सुधारने में मददगार साबित होते हैं।
स्पर्म मोबिलिटी में बढ़ोतरी जरूरी
विटमिन ई और सेलेनियम हमारे रक्त में मौजूद आरबीसी यानी रेड ब्लड सेल्स को ऑक्सिडेटिव डैमेज से बचाते है, जिससे आईवीएफ ट्रीटमेंट शुरू करने से पहले स्पर्म मोबिलिटी में बढ़ोतरी होती है। इसके अलावा जिंक भी शरीर के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण मिनरल है, जो स्पर्म सेल्स के लिए एक तरह से बिल्डिंग ब्लॉक का काम करता है और अच्छी क्वॉलिटी के शुक्राणुओं के निर्माण में काफी मददगार साबित होता है।