लखनऊ। केजीएमयू में अब फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों का सटीक पता बड़ी ही आसानी से होगी। क्योंकि यहां के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग में क्रायो मशीन की शुरुआत मंगलवार से हो गई है। यह मशीन बीमारियों की बायोप्सी के जरिये जानकारी देगी। यह मशीन सांस नली के इलाज में भी सहायक है।
ये होगा फायदा
नई मशीन से फेफड़े के कैंसर, टीबी तथा आईएलडी (फेफड़ों के सिकुडऩे की बीमारी) की सटीक जांच के साथ ही सांस नली में फंसी कोई भी चीज निकाली जा सकेगी तथा सांस नली की सिकुडऩ को भी ठीक किया जा सकेगा। इसकी शुरुआत विभागाध्यक्ष प्रो. सूर्यकांत ने विभाग के चिकित्सकों के साथ की। वहीं इस विषय पर एक कार्यशाला का भी आयोजन किया गया।
प्रो. सूर्यकांत ने कही ये बात
प्रो. सूर्यकांत ने इस अवसर पर कहा कि वैसे तो इस विभाग में ब्रान्कोस्कोपी की शुरुआत 1986 में ही हो गयी थी। इसके बाद प्रगति के क्रम में वर्ष 2002 में वीडियो ब्रॉन्कोस्कोपी एवं 2007 में थोरैकोस्कोपी की सुविधा शुरू हुई। क्रायोबायोप्सी के बारे में प्रो. सूर्यकांत ने बताया कि इसमें रिजिड अथवा फ्लेक्सिबल ब्रान्कोस्कोप का प्रयोग किया जाता है।
जटिल रोगों के उपचार में भी मदद
उन्होंने बताया कि क्रायोबायोप्सी मशीन के आने से फेफड़े के कैंसर, टीबी तथा आई.एल.डी. जैसी गंभीर बीमारियों की सटीक जांच हो सकेगी। इससे बायोप्सी की जांच करने में कम रक्त स्राव व कम जटिलता होती है। प्रो. सूर्यकांत ने बताया कि इस मशीन के द्वारा सिर्फ जांच ही नहीं बल्कि जटिल रोगों के उपचार में भी मदद मिलेगी। इस मशीन से सांस की नली में फंसी फॉरेन बॉडी को निकालने में मदद मिलेगी तथा सांस की नलियों की सिकुडऩ (स्टेनोसिस) को भी सही करने में मदद मिलेगी। इस मशीन से फेफड़े के ट्यूमर की बायोप्सी भी आसानी से हो जायेगी।
नई मशीन का दिया गया प्रशिक्षण
इस मौके पर क्रायोबायोप्सी के उपकरण तथा इसके प्रयोग के बारे में एक सफल कार्यशाला का भी आयोजन किया गया। इसमें सभी चिकित्सकों व जूनियर डॉक्टर्स को इस मशीन के उपयोग के बारे में प्रशिक्षण दिया गया। इस मौके पर रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के चिकित्सक प्रो. एसके वर्मा, प्रो. राजीव गर्ग, डॉ. अजय कुमार वर्मा, डॉ. आनन्द श्रीवास्तव, डॉ. दर्शन कुमार बजाज व समस्त सीनियर एवं जूनियर रेजिडेन्टस तथा ब्रॉन्कोस्कोपी यूनिट के सभी टेक्निशियन व सहयोगी स्टाफ मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. ज्योति बाजपेई ने किया।