लखनऊ। अब लैप्रोस्कोप से पेट के दर्द का आसानी से सटीक पता लगाया जा सकता है। बच्चों में हाने वाले पेट दर्द का पता सामान्य जांच से नहीं लग पाता था। पेट दर्द के कई कारण भी हो सकते हैं जैसे- एपेंडिक्स में संक्रमण, आंतों के उलझने, आंत में थैली बन जाना, पेट में किसी भी जगह छोटी-छोटी गांठ बनना। अब लैप्रोस्कोप से यह संभव हो गया है।
इसके अलावा अगर जरूरत पड़ी तो सर्जरी भी उसी समय की जा सकती है। यह जानकारी संजय गांधी पीजीआई के पीडियाट्रिक सर्जन प्रो. विजय उपाध्याय ने एसोसिएशन ऑफ मिनिमल एसेस सर्जन ऑफ इंडिया (एमासीकॉन-2018) में दी। प्रो. उपाध्याय रोल ऑफ लैप्रोस्कोपी इन चिल्ड्रेन विषय पर आयोजित सिम्पोजियम के चेयरपर्सन थे।
डॉक्टर ने बताई यह बात
अभी तक अल्ट्रासाउंड जांच पर निर्भर रहना पड़ता था। कई बार अल्ट्रासाउंड जांच में बीमारी पकड़ में नहीं आती थी। डॉ. विजय उपाध्याय ने कहा कि एपेंडिक्स में संक्रमण होने पर उसे निकाल दिया जाता है। आंत के आपस में उलझने को इंटू सुसेप्सन कहते हैं। इसमें पहले प्रेशर देकर खोलने की कोशिश करते है नहीं तो लेप्रोस्कोप से खोलते हैं। इसी तरह आंत में थैली बनने पर मल में खून और दर्द की परेशानी होती है। इसे ऑपरेशन कर ठीक किया जा सकता है।
यूरेटर में रुकावट से हो सकती है परेशानी
पीजीआई के यूरोलॉजी विभाग के डॉ. एमएस अंसारी ने बताया कि बच्चे को बुखार, पेशाब में जलन, विकास में कमी दिख रही है तो इसकी जांच करानी चाहिए। यह गुर्दे की गंभीर बीमारी हो सकती है। किडनी के पास स्थित पेल्विस किडनी और यूरीटर के बीच में रुकावट के कारण हो सकता है। इसका पता कई बार गर्भ में एटी नेटल केयर में लग जाता है। लेप्रोस्कोप से इसे पायलोप्लास्टी कर ठीक करते हैं।
लैप्रोस्कोप और हिस्टिरोस्कोप मददगार
डॉ. इंदुलता साहू के मुताबिक 40 से 50 फीसदी महिलाओं में बांझपन का कारण पता करने और इलाज में लैप्रोस्कोप और हिस्टिरोस्कोप मददगार साबित हो रहा है। इसके जरिए फाइब्रायड, फिलोपिटन ट्यूब में रुकावट, ओवरी में हिमैरेजिक सिस्ट, जंमजात यूट्राइन के बनावट में कमी का पता लगाते है। कारण पता करने के साथ परेशानी दूर करते हैं। इस तकनीक से फिलोफियन ट्यूब में रुकावट को दूर करते हैं।