लखनऊ। आज के समय में सोशल मीडिया लोगों पर काफी हाबी हो गया है। सोशल मीडिया की गिरफ्त में आकर लोग बीमारी के शिकार हो रहे हैं। ऐसे बीमार लोगों के लिए केजीएमयू में एक स्पेशल क्लीनिक खोली जाएगी। इसका नाम सर्विस फॉर हेल्दी यूज ऑफ टेक्नॉलजी यानी शट क्लिनिक होगा।
मददगार साबित होगा
बेंगलुरु के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ ऐंड न्यूरोसाइसेंस (निमहेंस) में शुरू की गई देश की पहली शट क्लिनिक में मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी और इससे हो रहे फायदों के बाद केजीएमयू के मनोरोग विभाग ने यहां भी इस तरह की क्लिनिक खोलने का फैसला किया है। केजीएमयू के मनोरोग विभाग के प्रो. पीके दलाल ने बताया कि शट क्लिनिक टेक्नॉलोजी के ज्यादा इस्तेमाल से बीमार हो रहे लोगों के मददगार साबित होगा। निमहेंस के डायरेक्टर प्रो. बीएन गंगाधर ने गुरुवार को लखनऊ में शुरू हुई 71वीं इंडियन सायकैट्रिक सोसायटी की नेशनल कॉन्फ्रेंस में सुझाव दिया कि शट क्लिनिक देश के सभी बड़े और प्रमुख चिकित्सा संस्थानों में शुरू की जानी चाहिए। इस बारे में उन्होंने स्वास्थ्य मंत्रालय से भी चर्चा की है।
पहले से ही हस्तक्षेप की आवश्यकता
ऑस्ट्रेलियाई मनोचिकित्सक और विश्व मनोरोग एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. हेलेन हेरमैन ने युवा मानसिक स्वास्थ्य में बड़ी चुनौतियों और युवा मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक वैश्विक साझेदारी विकसित करने की आवश्यकता के बारे में बात की। उन्होंने टिप्पणी की कि युवा जनसंख्या विभिन्न दृष्टिकोणों से एक बीच का चरण है। किसी अन्य आयु वर्ग की तुलना में युवा उम्र में मानसिक बीमारियों की सम्भावना अधिक होती है जबकि इस आयु वर्ग की मानसिक चिकित्सा सेवाओं तक पहुंच खराब है। युवाओं के जीवन में व्यवधान को कम करने और भविष्य में मानसिक विकलांगता को काम करने के लिए पहले से ही हस्तक्षेप करने की आवश्यकता होती है।
लगातार बढ़ रही संख्या
बेंगलुरु के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइसेंस (निमहेंस) में चार साल पहले देश की पहली सर्विस फॉर हेल्दी यूज ऑफ टेक्नोलॉजी (शट) क्लिनिक शुरू की गई थी। इसका मकसद टेक्नॉलोजी के ज्यादा इस्तेमाल के कारण मानसिक रूप से बीमार हो रहे लोगों को ठीक करने और उसके सही इस्तेमाल की नसीहत देना था। प्रो. गंगाधर के मुताबिक, पहले शट क्लिनिक सप्ताह में एक बार चलती थी, लेकिन टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से मानसिक रूप से बीमार हो रहे लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इस कारण इसे हफ्ते में दो बार शुरू किया गया है। उन्होंने बताया कि हर ओपीडी में पांच से सात मरीज इलाज कराने पहुंचते हैं, हालांकि अभी तक इस वजह से बीमार लोगों के लिए कोई विशेष नाम नहीं दिया गया है।