लखनऊ। ओरल कैंसर के मरीजों के लिए एक नई रणनीति बनाई गई है। अब ऐसे मरीजों को प्राथमिक स्तर पर चिन्हित किया जाएगा। इसके लिए राष्ट्रीय ओरल प्री कैंसर रजिस्ट्रेशन की शुरुआत की गई है। इसमें पांच संस्थान सहयोग करेंगे। यह बात केजीएमयू की प्रोफेसर दिव्या मेहरोत्रा ने गोविला सभागार में दंत संकाय के ओरल सर्जरी विभाग, ओरल मेडिसिन विभाग और ओरल पैथोलॉजी विभाग की ओर से आयोजित तृतीय अंतरराष्ट्रीय ओरल कैंसर व प्री कैंसर विषयक संगोष्ठी को संबोधित कर रही थीे।
हर साल दो बार परीक्षण
उन्होंने बताया कि पांचों संस्थान ओरल कैंसर के मरीजों का हर साल दो बार परीक्षण करेंगे और डाटा भी तैयार करेंगे। इसमें मरीजों का उपचार तो होगा ही इसके साथ ही शोध को भी बढ़ावा मिलेगा। सभी पांच संस्थानों को ऐप के जरिए जोड़ा जाएगा। इसमें संदिग्ध ल्यूकोप्लेकिया, सबम्यूकस और फाइब्रोसिस के मरीजों का रजिस्ट्रेशन किया जाएगा। उन्होंने बताया कि केजीएमयू के साथ एम्स ऋषिकेश, एम्स जोधपुर, पीजीआई चंडीगढ़ और टाटा कैंसर अस्पताल मुुंबई शामिल होंगे।
ऐसे लोगों को ओरल कैंसर होने की संभावना ज्यादा
बनाई गई नई रणनीति के तहत ओरल प्री कैंसर मरीजों का परीक्षण किया जाएगा। पांच साल तक नियमित जांच और उनका प्रोफाइल अपडेट किया जाएगा। इस दौरान टाटा कैंसर अस्पताल मुंबई के डॉ. सुधीर नायर ने कहा कि शोध में यह जानकारी मिली है कि ओरल कैंसर में जींस का काफी महत्व है। जिन लोगों में यह जींस परिवर्तित होने लगता है। उन्हें ओरल कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है।
ये थे मौजूद
संगोष्ठी में शामिल केजीएमयू के कुलपति प्रोफेसर एमएलबी भट्ट ने कहा कि ऐसे आयोजन को बढ़ावा देने की जरूरत है। कार्यवाहक डीन, डेंटल प्रो. अनिल चंद्रा ने कहा कि केजीएमयू कैंसर के इलाज के लिए पहचान बना चुका है। इस दौरान डॉ. राहुल पांडे, डॉ. पूरन चंद्र, डॉ. राकेश कुमार चक, डॉ. शालिनी त्रिपाठी, डॉ. विक्त्रस्म खन्ना आदि मौजूद थे।