लखनऊ। पूरी दुनिया में डिमेन्शिया से 5 करोड़ लोग ग्रसित हैं और प्रतिवर्ष 1 करोड़ लोग इससे पीडि़त होने के मामले सामने आते हैं। अल्जाइमर डिमेन्शिया का एक प्रमुख रूप है। डिमेन्शिया के कुल रोगियों में से इससे 60-70 प्रतिशत लोग ग्रसित हैं। यह आंकड़े विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार बताए जा रहे हैं।
ऐसा हुआ है
लखनऊ की रहने वाली कीर्ति की 58 वर्षीय मां को डॉक्टर ने डिमेन्शिया बताया है। उन्हें इस अवस्था में लगभग 4 साल हो चुके हैं लेकिन इसकी पहचान परिवार वालों को अब हो पायी है। शुरू में तो हम इसे पहचान ही नहीं पाये। कीर्ति ने बताया कि वह हमें जो बताती थीं तो हम उसकी उपेक्षा कर देते थे लेकिन धीरे-धीरे उनकी समस्या बढ़ती गयी वह जगह, नाम भूलने लगीं उन्हें यह भी नहीं पता होता था कि दिन है या रात। हमने उन्हें कई चिकित्सकों व अस्पतालों में दिखाया लेकिन तब तक देर हो चुकी थी।
क्या होता है डिमेन्शिया?
जैसे-जैसे हमें बुढ़ापा आता है, हमारी याद्दाश्त कम होने लगती है जबकि डिमेन्शिया एक सिंड्रोम है जो कि याददाश्त की समस्याओं के साथ शुरु होता है। बाद में यह मस्तिष्क के अन्य हिस्सों को प्रभावित करता है जिसके कारण व्यक्ति को बातचीत करने, रोजमर्रा के कामों को करने में, उसकी मनोदशा में, सोचने की प्रक्रिया में नुकसान पहुंचता है यहां तक कि व्यक्ति के निर्णय लेने की क्षमता में भी कमी आती है और उसके व्यक्तित्व में भी बदलाव आता है।
जागरुकता की कमी इलाज में बाधा
डिमेन्शिया दुनिया में वृद्ध लोगों में विकलांगता और निर्भरता के प्रमुख कारणों में से एक है। इससे न केवल पीडि़त ही प्रभावित होता है बल्कि उसके आस-पास रहने वाले लोग व उसके परिवार के सदस्य भी प्रभावित होते हैं। लोगों में जागरुकता व समझ की कमी के कारण इसके निदान व इलाज में बाधा आती है।
डिमेन्शिया के मुख्य कारण
मस्तिष्क में ट्यूमर
सिर पर किसी तरह की चोट लगना
किडनी, लिवर या थायराइड की समस्या
विटामिन्स की कमी
नशे की लत
पोषण की कमी
डिमेन्शिया के लक्षण
हम लक्षणों के आधार पर तीन हिस्सों में बांट सकते हैं
प्रारम्भिक अवस्था : इस अवस्था में बीमार होने से पहले, डिमेन्शिया व्यक्तित्व के आधार पर प्रत्येक व्यक्ति को अलग-अलग तरीके से प्रभावित करता है। शुरुआत में व्यक्ति परिचित स्थानों को भूल जाता है व उसे घटनाक्रम को याद करने में समस्या आती है।
मध्यावस्था : इस अवस्था में आते आते लक्षण और अधिक स्पष्ट हो जाते हैं। इस अवस्था में व्यक्ति हाल की घटनाओं व परिचितों के नाम भूलने लगता है, बातचीत करने में कठिनाई, स्वयम की देखभाल के लिए दूसरों की जरूरत पड़ती है, घर में खोया-खोया रहना है, बार -बार एक ही प्रश्न को पूछता है व भटकता है।
अंतिम अवस्था : इस अवस्था में व्यक्ति निष्क्रिय एवं दूसरों पर पूरी तरह निर्भर हो जाता है। इस अवस्था में रोग के अधिक लक्षण स्पष्ट होते हैं तथा याददाश्त में गड़बड़ी गंभीर हो जाती है। इस स्थिति में व्यक्ति समय व स्थान से अंजान हो जाता है, अपने दोस्तों व रिश्तेदारों को नहीं पहचान पाता है, स्वयं की देखभाल के लिए दूसरे लोगों की आवश्यकता पड़ती है, चलना फिरना कठिन हो जाता है। व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है यहां तक कि व्यक्ति आक्रामक हो जाता है।
डिमेन्शिया के प्रकार
डिमेन्शिया कई प्रकार का होता है-वैसकुलर डिमेन्शिया, लेवी बॉडी डिमेन्शिया तथा फ्रंट टेम्पोरल डिमेन्शिया।
वैस्कुलर डिमेन्शिया : इसमें मस्तिष्क को रक्त ले जाने वाली धमनियाँ अवरुद्ध हो जाती है फलस्वरूप मस्तिष्क का कुछ भाग आक्सीजन की कमी के कारण मृत हो जाता है। इस प्रक्रिया को स्माल स्ट्रोक भी कहते हैं।
लेवी बॉडी डिमेन्शिया : इस बीमारी से ग्रसित व्यक्तियों में अल्जाइमर व पारकिंसन दोनों ही रोगों के लक्षण से मिलते जुलते हैं। इन रोगियों में व्यक्तियों व जानवरों से संबन्धित दृष्टि मतिभ्रम अधिक होता है एवं भ्रम का स्तर पूरे दिन भर में घटता या बढ़ता रह सकता है। इस रोग से पीडि़त व्यक्ति कंपन, मांसपेशियों में अकडऩ, गिरने या चलने में कठिनाई की अनुभूति कर सकते हैं।
फ्रंट टेम्पोरल डिमेन्शिया : यह मस्तिष्क के अन्य भागों की तुलना में अग्रभाग को अधिक प्रभावित करता है तब व्यक्ति के व्यक्तित्व में काफी बदलाव आता है तथा याददाश्त संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
शुरू में ही इलाज बेहतर
राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के राज्य स्तरीय नोडल अधिकारी डॉ. सुनील ने बताया यदि शुरुआत में ही डिमेन्शिया के लक्षणों को पहचान लिया जाए तो दवाओं के द्वारा न्यूरोंस के विघटन को रोका जा सकता है, नहीं तो यह बीमारी गंभीर रूप ले सकती है और लाइलाज हो जाती है।