लखनऊ। आज के समय में बच्चे पिज्जा, बर्गर, चिप्स, कोल्ड ड्रिंक्स का सेवन अधिक करते हैं और उपयुक्त आहार लेने के बजाय इन खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं जिसका परिणाम यह होता है कि भूख तो मिट जाती है लेकिन शरीर को संतुलित आहार नहीं मिल पाता है।
आज ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में पिज्जा, बर्गर, चिप्स, कोल्ड ड्रिंक्स, जिनमें फैट, शुगर व नमक की अधिकता होती है, का सेवन प्रमुखता से किया जा रहा है। दिल्ली के स्कूल जाने वाले बच्चों में इन खाद्य पदार्थों के सेवन की आदतों पर एक अध्ययन में पाया गया कि विभिन आयु वर्ग के बच्चे 60-70 फीसदी बच्चे सप्ताह में दो से तीन बार चिप्स का सेवन करते हैं। एक अध्ययन में, कुरुक्षेत्र जिले में अधिक वजन वाली किशोरियों (16-18 वर्ष) के बीच दैनिक ऊर्जा का सेवन अनुशंसित दैनिक भत्ता (आरडीए) का लगभग 110 फीसदी पाया गया और वसा का सेवन आरडीए से लगभग दोगुना था। लगभग 60 फीसदी किशोरियों में यह प्रभाव दिखा कि वे सम्पूर्ण आहार के स्थान पर चिप्स, चॉकलेट व कार्बोनेटेड पेय पदार्थों का सेवन करती हैं।
ये है संतुलित आहार
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रीशन (एनआईएन) के ‘आहार दिशानिर्देश 2011Ó के अनुसार संतुलित आहार वह होता है जो कि आवश्यक मात्रा व संतुलित अनुपात में सभी पोषक तत्व प्रदान करे। चार मुख्य खाद्य समूहों जैसे- अनाज, बाजरा व दालें, फल व सब्जियां, तेल वसा व मेवे, दूध व दूध से बने पदार्थ तथा मांस व मछली से सजी थाली को संतुलित आहार कहा जाता है। पिज्जा, बर्गर, तले भुने खाद्य पदार्थ, चाकलेट पौष्टिक पदार्थ के रूप में उपयुक्त नहीं हैं इन्हें कभी कभी ही अपने आहार में शामिल करना चाहिए।
खाने के स्थान पर स्नेक्स, शक्कर व तैयार खाद्य पदार्थों का सेवन करने से मना करते हैं क्यूंकि तैयार खाद्य पदार्थों में वसा, शुगर, नमक व परिरक्षक (प्रीसर्वेटिव) अधिक मात्रा में होते हैं जिनका नियमित रूप से सेवन करने पर स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। बच्चे बढ़त की अवस्था में होते हैं अत: बच्चों कि वृद्धि, संक्रमण से लडऩे, परिपक्वता, शरीर के निर्माण व हड्डियों के विकास में संतुलित आहार अत्यंत आवश्यक है।
अटेंशन डेफिशिएट हाइपरएक्टीविटी डिसॉर्डर की समस्या
पोषण परामर्शदाता रूपाली बताती हैं कि एचएफएसएस खाद्य पदार्थ खाने से बच्चों में अटेंशन डेफिशिएट हाइपरएक्टीविटी डिसॉर्डर (एडीएचडी) की समस्या हो जाती है। यह एक मनोवैज्ञानिक समस्या है जो कि आमतौर पर बच्चों में देखी जाती है। इसमें बच्चे ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाते हैं। इस स्थिति में बच्चे या तो अधिक सक्रिय हो जाते हैं या/सुस्त रहते हैं।
इस बात पर ध्यान दें
इन खाद्य पदार्थो में कृत्रिम रंगों, कृत्रिम स्वाद व परिरक्षकों का उपयोग किया जाता है जिससे बच्चे इसके आदि हो जाते हैं इन पदार्थों में अजीनोमोटो का सेवन किया जाता है जो कि धीमा जहर का काम करता है। बच्चे संतुलित आहार का सेवन न कर अपनी भूख इसी से मिटाते हैं जिससे शरीर में सूक्ष्म पोषक तत्वों व अतिसूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। अधिक नमक, शुगर व फैट के सेवन से बच्चों में मोटापा, डायबिटीज, हाइपरटेंशन व हृदय संबंधी बीमारियों के होने की संभावना होती है।
ऐसा करें
रूपाली बताती हैं कि बच्चों को थोड़ा-थोड़ा खाना दिन में कई बार खाना चाहिए। उन्हें कम परिष्कृत शक्कर, अधिक प्रोटीन, अधिक आयरन व कैल्शियम वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए। अधिक मात्रा में फल व सब्जियां, दूध, अंडे, साबुत अनाज व चीज का सेवन करना चाहिए। पानी ज्यादा से ज्यादा पीना चाहिए।