
मान्यता मिले हो गए 40 साल
उप्र में योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति को चिकित्सा के विषय के रूप में मान्यता प्राप्त हुए लगभग 40 वर्षों का समय व्यतीत हो चुका है किन्तु अन्य आयुष की मान्यता प्राप्त चिकित्सा पद्धतियों यथा-आयुर्वेद, होम्योपैथी, यूनानी की तरह इसका पृथक विभाग एवं निदेशालय का गठन नहीं हो पाया है। उत्तर प्रदेश में योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा का आयुष के अन्तर्गत विभाग एवं निदेशालय ना होने से इस विषय के पाठ्यक्रमों में एकरूपता नहीं है तथा शिक्षा एवं शोध का स्तर गिरता जा रहा है। विभाग एवं निदेशालय स्थापित कर देने से इस पुरातन चिकित्सा पद्धति का स्तर विकसित होगा।
औषधि विहीन उपलब्ध होगी चिकित्सा
योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा की विभिन्न योजनाओं को संचालित करने में आसानी होगी। उप्र में योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा के राजकीय अस्पतालों को स्थापित करके उप्र के जनसामान्य को औषधि विहिन चिकित्सा उपलब्ध करवायी जा सकती है। औषधि विहिन चिकित्सा उपलब्ध हो जाने से राज्य सरकार का औषधियों पर होने वाले व्यय भार को कम किया जा सकता है। इस चिकित्सा पद्धति का विभाग एवं निदेशालय स्थापित हो जाने से योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा की विभिन्न योजनाओं को सुव्यवस्थित एवं प्रभावी रूप से लागू करवायी जा सकती है और यह चिकित्सा प्रणाली उप्र में संगठनात्मक रूप से विकसित होगी।
पत्र लिखकर शासन से की मांग
अलग विभाग एवं निदेशालय गठित कराने के लिए एसोसिएशन द्वारा मुख्यमंत्री, आयुष मंत्री, मुख्य सचिव, आयुष विभाग, उप्र शासन को पत्र लिखकर मांग की गयी है तथा आगामी जून माह में इसे लेकर लखनऊ में योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा का सम्मेलन आयोजित होने जा रहा है। इसमें प्रदेश के समस्त योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा के शिक्षक एवं चिकित्सक भाग लेंगे।
नियमावली बनाने का आदेश
डॉ. यादव ने बताया कि योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा के विनियमितीकरण एवं इसके चिकित्सकों के पंजीकरण के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय खण्डपीठ लखनऊ में रिट याचिका दाखिल की थी जिसमें उच्च न्यायालय ने उप्र सरकार को योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा की नियमावली बनाने का आदेश दिया गया था। न्यायालय के आदेश के अनुपालन के क्रम में आयुष विभाग द्वारा एक नियमावली का निर्माण करके विधिक्षण के लिए प्रेषित कर दिया है।