मधुमेह से ग्रसित 20 से 30 प्रतिशत मरीज होते हैं डायबिटिक रेटिनोपैथी के शिकार
लखनऊ। भारत में मौजूदा समय में आंख की रोशनी के लिए सबसे बड़ा खतरा मोतियाबिन्दु को माना जाता है। इसके निवारण के लिए सरकार ने भी कमरकस रखी है। जिस प्रकार मोतियाबिन्दु के खात्मे पर काम हो रहा है। उस हिसाब से 2020 तक मोतियाबिन्दु के खात्मे की बात कही जा रही है। लेकिन मोतियाबिन्दु से भी ज्यादा अंधता का कारण बनने वाली बीमारी डायबिटिक रेटिनोपैथी चुपचाप अपने पैर पसार रही है।
मधुमेह से पीडि़त व्यक्ति के रेटीना को सबसे ज्यादा नुकसान
डायबिटिक रेटिनोपैथी में मधुमेह से पीडि़त व्यक्ति के रेटीना को सबसे ज्यादा नुकसान होता है। आने वाले समय मे भारत के निवासियों के लिए यह एक बड़ी समस्या मुंह बाये खड़ी है। यह कहना है कलकत्ता से आये ऑल इण्डिया ऑप्थैमोलॉजि सोसाईटी के चेयरमैन डा.पार्थ विश्वास का। वह केजीएमयू के नेत्ररोग विभाग व ऑल इण्डिया ऑप्थैमोलॉजि सोसाईटी के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित तीन दिवसीय सेंट्रलजोन पोस्ट ग्रेजुएट प्रोग्राम के दूसरे दिन पीजी स्टूडेंट को संबोधित कर थे।
20 से 30 प्रतिशत लोग डायबिटिक रेटिनोपैथी के शिकार
उन्होंने कहा कि मोतियाबिन्दु के इलाज के लिए मौजूदा समय में बहुत से चिकित्सक मौजूद है। लेकिन आने वाले समय में डायबिटिक रेटिनोपैथी की चपेट में आने वाले लोगों के इलाज के लिए गुणवत्तापूर्ण इलाज की बहुत जरूरत पडऩे वाली है। जिसके लिए डायबिटिक रेटिनोपैथी के विशेषज्ञों की जरूरत होगी। उन्होंने बताया कि 2025 तक भारत मधुमेह रोगियों के राजधानी के रूप में जाना जायेगा। मधुमेह का प्रमुख कारण अस्त व्यस्त जीवन शैली है। उन्होंने बताया कि मधुमेह से ग्रसित लोगों में से 20 से 30 प्रतिशत लोग डायबिटिक रेटिनोपैथी के शिकार हैं।
क्या है डायबिटिक रेटिनोपैथी
डायबिटिक रेटिनोपैथी से ग्रसित मरीज के आंखों की रोशनी भी जा सकती है। मधुमेह पीडि़त व्यक्तिओं में इस बीमारी का पता पहले नहीं चलता ,लेकिन जब मधुमेह रेटिना को काफी नुकसान पहुंचा चुका होता है,तब इस बीमारी का पता चलता है। डा.पार्थ विश्वास के मुताबिक मधुमेह पीडि़तों में इस बीमारी के प्रति सजग रहने की जरूरत होती है। उन्होंने बताया कि डायबिटिक रेटिनोपैथी में आंख के परदे पर सूजन आ जाती है। जिससे रक्तस्राव होने लगता है। इसके अलावा परदे के आगे खाली जगह पर नई रक्त वाहिनियां असामान्य तरीके से फैलने लगती है। जिससे एक जाल सा बन जाता है। इससे आंखों की रोशनी में धीरे-धीरे गिरावट आती जाती है। जो बाद में अंधापन का कारण बनता है।
एडमिशन लेने से पहले करायें आंखों की जांच
केजीएमयू के डा.अरुन शर्मा ने बताया कि बच्चों को आंख संबंधी बीमारियों से बचाने के लिए समय पर आंखों की जांच जरूरी है। जिससे समय रहते उनका इलाज हो सके। इसके लिए माता-पिता को जागरुक रहने की बेहद जरूरत है। उन्होंने बताया कि बच्चे आंखों से संबंधित समस्या को जल्दी नहीं समझ पाते और जबतक पता चलता है,तब तक काफी बिलंब हो जाता है। देर होने पर इलाज में मुश्किल होती है। इसके लिए सभी स्कूलों को अपने यहां दाखिला लेने से पहले बच्चों के आंखों की जांच करानी चाहिए। जिससे बच्चों के आखों की बीमारी को समय रहते पकड़ा जा सके। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि जिस स्कूल को जरूरत हो वहां पर केजीएमयू का नेत्ररोग विभाग कैंप लगाकर बच्चों के आंखों की जांच करने के लिए तैयार है।