लखनऊ। प्रदेश के सभी विभागों में कार्यरत आउटसोर्सिंग कर्मचारियों के सुरक्षित नौकरी और उचित वेतन के लिए विभिन्न संगठनों द्वारा आउटसोर्सिंग नियमावली की मांग की गई थी। जिस पर शासन द्वारा आउटसोर्सिंग नियमावली बनाई जा रही है। जहां तक जानकारी हासिल हुई है नियमावली में कर्मचारियों की मूलभूत समस्याओं का निराकरण नहीं हो पा रहा है।
जॉब सिक्योरिटी कर्मचारियों की मुख्य मांग
आउटसोर्सिंग व्यवस्था के तहत युवा कर्मचारियों से अल्पकालिक सेवा ली जाती है और तमाम झूठे आरोप लगाकर युवा कर्मचारियों का उत्पीडऩ करते हुए नौकरी से हटा दिया जाता है, जिससे विभाग की सेवाओं पर भी फर्क पड़ता है और युवाओं के साथ छल होता है। इसलिए जॉब सिक्योरिटी कर्मचारियों की मुख्य मांग है। यह जानकारी मिडिया प्रभारी सच्चिता नन्द मिश्रा ने दी है।
न्यूनतम वेतन 18000 प्रतिमाह की मांग
बिहार सरकार द्वारा आउटसोर्सिंग नियमावली बनाई गई है जिसमें 50 वर्ष की उम्र तक आउटसोर्सिंग कर्मचारी कार्य करता है और एजेंसियों का अनुबंध 7 वर्ष का होता है। दूसरी ओर उप्र में आउटसोर्सिंग कर्मचारियों को आज भी 5000 वेतन से शुरुआत की जाती है जो कि बहुत ही कम है। इसलिए संघ द्वारा न्यूनतम वेतन रु 18000 प्रति माह की मांग की गई थी। आज केंद्र सरकार द्वारा न्यूनतम वेतन रु 24000 कर दिए जाने के बाद भी नियमावली में पद के अनुसार वेतन निर्धारण नहीं हुआ। शासन के कार्मिक विभाग को चाहिए कि जिस प्रकार स्थायी पदों की तरह आउटसोर्सिंग के पद सृजित किए जा रहे हैं उसी प्रकार आउटसोर्सिंग के पदों का वेतन भी निश्चित किया जाए। जिससे कर्मचारियों को प्रदेश में एक समान और पद अनुसार वेतन की सुविधा मिल सके।
पद अनुसार वेतन
तमाम जनपदों में आज भी रुपया 5000 प्रतिमाह वेतन पर सफाई कर्मचारी, वार्ड बॉय, वार्ड आया, चपरासी आदि कार्य कर रहे हैं। वेतन बढ़ाने अथवा बकाया वेतन भुगतान की मांग करने पर यूनियन बनाने पर उनको नौकरी से हटा दिया जाता है। इसलिए शासन सबसे पहले नियमावली में यह व्यवस्था कराए कि कर्मचारी सुरक्षित होकर नौकरी कर सके और उसे उसके पद अनुसार उनका वेतन मिल सके। संयुक्त स्वास्थ्य आउटसोर्सिंग संविदा कर्मचारी संघ द्वारा पहले भी सुझाव पत्र दिया जा चुका है। शासन कार्मिक विभाग को पुन: पत्र द्वारा अपना सुझाव भेजा गया है।