लखनऊ। सीओपीडी के लगभग 5 करोड़ मामले हैं और हर साल लगभग 31.7 लाख से अधिक लोगों की मौत का कारण बन गया है। निम्न और मध्यम आय के लोगों में लगभग 90 प्रतिशत मौत की वजह सीओपीडी बन चुका है। उक्त बातें चेस्ट स्पेशिलिस्ट डॉ. एके सिंह ने एक शिविर में कही।
निशुल्क ब्लड प्रेशर व फेफड़ों की जांच
अपोलोमेडिक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल ने क्रोनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज को जागरूक करने के लिए बुधवार को निशुल्क चिकित्सा शिविर का आयोजन किया। यह चिकित्सा शिविर स्मृति उपवन में लगाया गया था। इस शिविर में अपोलोमेडिक्स द्वारा निशुल्क ब्लड प्रेशर व फेफड़ों की जांच की गई। इसके पहले भी 19 नवंबर को ज्योतिबा फुले पार्क, 20 नवंबर को इको गार्डन में निशुल्क चिकित्सा शिविर का आयोजन किया गया था।
सीओपीडी फेफड़ों की बीमारी है
चेस्ट स्पेशिलिस्ट डॉ. एके सिंह ने बताया कि सीओपीडी या क्रोनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज एक क्रॉनिक फेफड़ों की बीमारी है। सीओपीडी रोगियों को अक्सर सांस लेने में मुश्किल होती है। सीओपीडी के लक्षण केवल खांसी और सांस की तकलीफ ही नहीं हैं। सीओपीडी के बीरे में उन्होंने कहा कि विश्व स्तर पर सीओपीडी रोगियों में कार्डियोवास्कुलर बीमारियों के कारण कई प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिलते हैं।
इससे उनकी जिंदगी की गुणवता कम होती है, कई बार अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है जिसके कारण मरीज की मौत भी हो सकती है। सीओपीडी ग्रस्त रोगियों में आमतौर पर इस्केमिक हार्ट डिजीज, हार्ट फेल्यर, कार्डियेक अररिथमिया जैसी सीवीडी की बीमारियां देखने को मिलती हैं।
शहर की जहरीली हवा से खतरा
सीओपीडी के लगभग 80 प्रतिशत रोगी ऐसे होते हैं जो धूम्रपान करते हैं। सीओपीडी के रोगी जो हालांकि धूम्रपान नहीं करते फिर भी धुएं वाले वातावरण में रहने के कारण रोग से ग्रस्त होते हैं। दीपावली के दौरान पटाखों में तांबा, कैडमियम जैसे कई तरह के जहरीले पदार्थ मौजूद रहते हैं जो सांस लेने के संबंध में तकलीफदेह बन रहे हैं, साथ ही शहर की जहरीली हवा एलर्जी, हृदय रोग व सीओपीडी जैसे खतरों को बढ़ावा दे रहे हैं। इसे जागरुकता के माध्यम से ही रोका जा सकता है। इसके अलावा, वजन कम करना, नियमित व्यायाम और पौष्टिक आहार जैसे फल, प्रोटीन और हरी सब्जिया रोग को दूर करने में आपकी मदद करता हैं।