अगर आप भी गाय, भैंस, बकरी, भेड़ आदि के संपर्क में रहते हैं तो आपके लिए यह खबर खास है। जो लोग संपर्क में रहते हैं उन्हें कांगो फीवर (Congo Fever) का खतरा ज्यादा रहता है। यह फीवर विषाणु जनित रोग है। घर पर पाले जाने वाले पशुओं की चमड़ी से चिपके रहने वाला ‘हिमोरलÓ नामक परजीवी कांगो रोग का वाहक है। कांगो फीवर फैलने लगा है। कई जगहों पर इसके मरीज भी मिले हैं। कुछ संदिग्धों की जांच भी शुरू कर दी गई है।
कांगो बुखार क्या है
कांगो बुखार विषाणु से होने वाला एक रोग है। यह वायरस पूर्वी एवं पश्चिमी अफ्रीका में बहुत पाया जाता है। सबसे पहले 1944 में क्रीमिया देश में इस पहचान हुई। फिर1969 में कांगो में इस रोग का पहला मरीज सामने आया। इसके बाद इसका नाम सीसीएचएफ (Crimean–Congo hemorrhagic fever ) पड़ा। ये रोग पशुओं के साथ रहने वालों लोगों या घर पर जानवार पालने वाले लोगों को आसानी से हो जाता है, हिमोरल नामक परजीवी इस रोग का वाहक है।
जानलेवा बीमारी
इसलिए इसकी चपेट में आने का खतरा उन लोगों को ज्यादा होता है जो गाय, भैंस, बकरी, भेड़ एवं कुत्ता आदि जानवरों को पालते हैं या उनके संपर्क में रहते हैं। जानवरों में ये बीमारी टिक्स या पिस्सू से फैलती है। कांगों फीवर जानलेवा बीमारी है, क्योंकि इस तरह के संक्रमण के 30 से 80 प्रतिशत मामलों में मरीज की मौत हो जाती है।
कांगो के लक्षण
इस वायरस की चपेट में आने के बाद मरीज के शरीर से खून का तेज रिसाव होता है और शरीर के विभिन्न अंगों एक साथ काम करना बंद कर देते हैं। इससे संक्रमित होने पर तेज बुखार के साथ शरीर की मांसपेशियों में दर्द, चक्कर आना और सिर दर्द, आंखों में जलन और रोशनी से डर जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। इसके अलावा मरीज की पीठ में दर्द और उल्टी और गला बैठ जाने जैसी समस्याएं भी सामने आती हैं। संक्रमण के दौरान खून में तेजी से प्लेटलेट्स घटने लगते हैं।
इलाज
कांगों फीवर का इलाज सामान्य फ्लू की तरह किया जाता है। इसे ठीक होने में थोड़ा वक्त लगता है। किसी सरकारी या निजी अस्पताल में इसका किया जाता है। इससे बचने के लिए साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। पशुपालन वाली जगह पर सफाई रखें। पशुओं की सफाई का भी ध्यान रखें।