आयुर्वेद में अरण्डी के तेल का बहुत महत्व है। यह कई रोगों के लिए उपयोगी साबित होता है। इसे कई नाम से जाना जाता है। यह किसी भी तरह के संक्रमण और आपके चेहरे के लिए उपयोगी है। आयुर्वेद के अनुसार यह जड़ी-बूटी शरीर के लिए अंदरुनी और बाहरी दोनों तरह से उपयोगी है।
पोषक तत्व
एरण्ड के बीजों के अलावा पत्ते, जड़ और तेल सभी कई रोगों के इलाज में लाभदायक होते हैं। इनमें एंटीइंफ्लेमेट्री, एंटीऑक्सीडेंट, एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल तत्व होते हैं। यह कई प्राकृतिक तत्वों से भी युक्त है जिस कारण यह त्वचा और बालों की सेहत बनाए रखता है। एरण्ड को अरण्ड, अरण्डी, संस्कृत में गन्धर्वहस्तमक कहते हैं। इसके पत्ते पांच चौड़ी फांक के होते हैं। यह लाल व सफेद दो रंगों का होता है।
फायदे
जोड़ों और मांसपेशियों में होने वाले दर्द, सूजन को दूर करने में इसे खासतौर पर प्रयोग में लेते हैं। इसके अलावा छोटे बच्चों के शरीर की मालिश के लिए इसका इस्तेमाल होता है। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है। शुष्क त्वचा में नमी लाने के साथ यह निखार भी लाता है। इसके इस्तेमाल से किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचा जा सकता है। अरंडी के तेल में एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंट-एजिंग व एंटी-बैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं। यह त्वचा को मॉश्चराइज करता है और उसमें निखार लेकर आता है। इससे मसाज करने से शरीर के अंदर रक्त प्रवाह अच्छा हो जाता है और चेहरा जवां व खिला-खिला नजर आता है।
इस्तेमाल
ज्यादातर इसके तेल को प्रयोग में लिया जाता है। इसके लिए इसे अकेले या फिर अन्य जड़ी-बूटी या औषधि के साथ प्रयोग करते हैं। साथ ही त्वचा पर बाहरी रूप से इसके पत्ते को पीसकर लेप की तरह लगा सकते हैं। इसके बीजों को भी चिकित्सक की सलाह से लिया जा सकता है।
ध्यान रखें
सीमित मात्रा से अधिक प्रयोग पेट की मसल्स को कमजोर करता है। कुछ को इससे एलर्जी हो सकती है, पहले स्किन टैस्ट करा लें। कोई दवा ले रहे हैं तो इसके प्रयोग से पूर्व चिकित्सकीय सलाह लें।